मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

रुपकुंड से वापस हरिद्वार -बद्रीनाथ होते हुए

04 अक्टूबर, 2017
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आली बुग्याल समुद्रतल से करीब 3450-3500 मीटर की उंचाई पर स्थित बहुत ही सुंदर बुग्याल है। सुंदरता के मामले में आली, बुग्याल बेदनी से भी काफी आगे है। बेदनी में जहाँ भीड और गंदगी दिखती है वहीं आली में खूबसूरत मखमली घास,सुंदर ढलान और उसके नीचे खत्म होती ट्री लाइन अर्थात वृक्षरेखा - जैसा फिल्मों में दिखाते हैं एकदम वैसा ही दिखता है आली। कल शाम हम रुपकुंड देखकर आली आ गये थे। यहाँ बुग्याल के शुरुआत में ही एक ढाबा है। हमने इसी ढाबे के पास अपना टेंट लगाया था। कल शाम अधिक थके होने के कारण हम लोग अपने टेंट में ही आराम करते रहे। रात को डिनर के समय आज का प्लान बनाया गया। आली बुग्याल से वापस आने के दो रास्ते हैं। पहला रास्ता सीधा आली पार करके तोलपानी-दीदना होते हुए कुलिंग गांव जाता है। गौरतलब है कि कुलिंग लोहाजंग वाण रास्ते पर लोहाजंग से करीब 4-5 किमी आगे है। अर्थात इस रास्ते से दीदना-कुलिंग होते हुए सीधे लोहाजंग पहुंचा जाता है। दूसरा रास्ता आली बुग्याल के शुरुआत में ही नीचे उतरकर जंगल के रास्ते से होता हुआ गैरोली पाताल में बेदनी बुग्याल - वाण वाले रास्ते पर मिलता है। चुंकि मैं अपनी स्कूटी वाण में खडी करके आया था तो चाहकर भी हम दीदना वाले रास्ते पर नही जा सकते थे। इसलिए तय किया कि सुबह आराम से आली भ्रमण करके नौ बजे तक निकलेंगे।

अगले दिन सुबह मैं सात बजे तक सोता रहा। एक तो दिन भर के थके थे, दूसरे आली भगुवाबासा से काफी कम ऊंचाई पर है और यहाँ बेदनी की तरह भीड-भाड, शोर शराबा भी  नही है तो रात में जबरदस्त नींद आयी थी। फ्रैश होकर चाय पीने के बाद मैं आली की खूबसूरती अपने कैमरे में कैद करने निकल लिया। अभी कुछ दिन पहले ही मैंने कैमरा खरीदा है -कैनन 1300 D. अभी ठीक से चलाना भी सीखना है। इसीलिए इस ट्रैक पर इतने अच्छे फोटो नही खींच पाया। आली बुग्याल ऐसी जगह स्थित है जहाँ से  त्रिशुल और नंदाघुंटी भी दिखती हैं, वाण भी दिखता है और दीदना व कुलिंग भी दिखायी पडते हैं। सुबह के समय मौसम साफ होने की वजह से दूर चौखम्भा, केदारनाथ, नीलकन्ठ समेत अनेकों बर्फीली चोटियां तक साफ दिखायी दे रहीं थी। करीब आधे-पौने घंटे तक मैं आली बुग्याल की सुंदरता का आनंद लेता रहा -आंखिर में जब गजेंद्र ने आवाज दी कि सर आ जायिए नास्ता तैयार  हो गया है तब मैं वापस ढाबे पर आया। आलू परांठा और चाय का नास्ता करके करीब पौने नौ बजे हम लोग आली से निकल लिए।

आली से गैरोली पाताल के लिए रास्ता हमारे ढाबे के पास से ही नीचे उतरकर जंगल से होता हुआ जाता है। ये जंगल काफी घना है लेकिन जंगली जानवर कम ही हैं। यहाँ बहुत बडे पैमाने पर जंगली जानवरों का शिकार होने के कारण अधिकतर जानवर दूर के जंगलों में चले गये हैं। गैरोली पाताल तक के 3-4 किमी के रास्ते में हमें एक भी जानवर नही दिखा। हम गैरोली में बिना रुके ही निकल गये। अब हम ट्रैकिंग के हाइवे पर आ चुके थे तो हमने भी अपनी रफ्तार पकडी और सीधे वाण जाकर ही थमें। हाँ रणकाधार में थोडी देर जरूर रुके थे। यहाँ आइडिया का फुल सिग्नल आ रहा था। अपने गांव वाले दोस्तों को फोन किया तो पता चला वो लोग आज गंगोत्री से वापिस आ रहे हैं और अभी उत्तरकाशी से आगे आ चुके हैं। आज वो लोग श्रीनगर के आसपास कहीं रुकेंगे और कल बद्रीनाथ जायेंगे। इधर मैं भी आज कम से कम थराली तक पहुंच ही जाउंगा। थराली से कर्णप्रयाग करीब 45 किमी दूर है जबकि श्रीनगर से करीब 64 किमी है। इसलिए तय किया कि तुम लोग पहुंचो मैं तुम्हे कल सुबह 10 बजे तक कर्णप्रयाग में मिलता हूँ। बद्रीनाथ साथ में ही चलेंगे।

एक बजे के करीब हम वाण पहुंचे। यहाँ  10 मिनट आराम करके बाइक (स्कूटी) उठाई और लोहाजंग के लिए निकल लिए। लोहाजंग में टेंट और बाकी सामान वापिस किया और गजेंद्र का हिसाब करके उसे भी विदा किया। यहाँ गजेंद्र और बाकी लोगों की एक बात मुझे बहुत बुरी लगी। हम लोगों ने चार दिन में रुपकुंड ट्रेक किया था और 600 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से गजेंद्र का 2400 रुपये बनता था। लेकिन जब मैंने उसे 2500 रुपये दिये तो पट्ठा बोला के 3600 रुपये लुंगा। चाहे आप ट्रैक कितने भी दिन में करो हम लोग तो छह दिन के हिसाब से ही पैसे लेते हैं। टेंट वाला और उसकी दुकान पर बैठे 1-2 लोग भी  उसे सपोर्ट करने लगे। मुझे बडा बुरा लगा। मैंने कहा यार जब मैंने तुम्हे क्लीयर बोला था कि मैं 600 प्लस खाना प्रतिदिन के हिसाब से दुंगा तो तुमने उस समय नही बोला कि मैं कम से कम छह दिन का पैसा लुंगा। थोडी बहुत कहा सुनी भी हुई इस मामले में, लेकिन मैंने अब उसे सिर्फ 2400 रुपये ही दिये। और अंत में इस ट्रैक से ये एक कडवी याद लेकर लौटा।  इसके तुरंत बाद मैं लोहाजंग से निकल लिया और शाम के साढे पांच बजे तक अंधेरा होने से पहले ही थराली पहुंच गया। थराली पिंडर नदी के तट पर स्थित है। यहाँ 350 रुपये में बडे आराम से एक कमरा मिल गया गीजर,टीवी के साथ। आज कईं दिनो बाद टीवी देखने में बडा आन्नद आया। आराम से खाना वाना खाकर मोनू लोगों को फोन करा तो पता चला पट्ठे अभी भी चल रहे हैं और 8-9 बजे तक श्रीनगर पहुंचेंगे। सुबह साढे छह बजे तक निकलना है ऐसा तय करके मैं अपने रुम में जाकर सो गया।

अगले दिन सुबह करीब सवा सात बजे मैं थराली से चला। उससे पहले स्कूटी की टंकी फुल करा ली। मोनू,विकास लोग मुझसे 20-25 मिनट पहले ही निकल लिए थे। रात वो लोग श्रीनगर से दो किमी पहले कीर्तिनगर में रुके थे। रास्ता खराब था तो मुझे कर्णप्रयाग पहुंचने में पौने दो घंटे लग गये। यहाँ अलकनंदा-पिंडर संगम के पास एक तिराहे पर मुझे ये लोग मिल गये। मोनू, विकास,पंडत और इनके साथ मवाना का एक लडका और था। एक बार फिर से हमारी केदारनाथ वाली मंडली हो गयी। कर्णप्रयाग में ही आलू परांठा और चाय का नाश्ता करके 10 बजे के आस-पास हम लोग बद्रीनाथ के लिए रवाना हुए। प्लान किया कि अगर समय रहा तो 'माणा' तक जायेंगे। मगर अनंत: ऐसा न हो सका और हम बद्रीनाथ से ही वापस लौट आये। जोशीमठ से थोडा पहले हेलंग के पास वृद्ध बद्री के दर्शन किये और करीब दो बजे हम जोशीमठ पहुंचे। यहाँ से बाइपास वाला रास्ता पकडा और बिना रुके निकल गये। हाँ,जोशीमठ बाइपास पर एक जगह हमें भगवान राम की शोभायात्रा मिली।  शायद उत्तराखंड के पहाडों में दशहरे के बाद इस तरह के उत्सव मनाये जाते हैं। खैर जोशीमठ के अंत में ही एक पैट्रोल पम्प से हमनें तेल लिया क्योंकि इसके बाद आगे कोई पम्प नही है और वापिस इसी पम्प पर तेल मिलेगा।

जोशीमठ से बद्रीनाथ करीब 45 किमी रह जाता है। आगे का रास्ता विष्णुप्रयाग, गोविंदघाट, पांडुकेश्वर, हनुमानचट्टी होते हुए जाता है। विष्णुप्रयाग में धौलीगंगा (विष्णणुगंगा) और अलकनन्दा का संगम है। यहीं जेपी ग्रुप का एक हाइड्रो प्रोजेक्ट चल रहा है। गोविंदघाट में अलकनंदा पार करके एक रास्ता सुप्रसिद्ध फूलों की घाटी और हेमकुंड साहिब के लिए जाता है। काफी मन है उधर जाने का, हो सकता है अगली बार फूलों की घाटी और हेमकुंड साहिब का ही नम्बर हो।  पांडुकेश्वर एक काफी बडा कस्बा है और यहाँ योगध्यान बद्री मंदिर भी स्थित है। पांडुकेश्वर के बाद रास्ता काफी खराब है जबकि हनुमानचट्टी के बाद तो कई जगह भूस्खलन हो रखा है। हाँ, आंखिरी के 7-8 किमी का रास्ता अभी बना है और एकदम शानदार है। करीब सवा चार बजे हम बद्रीनाथ पहुंचे। बद्रीनाथ भी काफी बसा हुआ है। और यहाँ एक पुलिस थाना भी है। किसी एक बडे से कस्बे जैसा दिखता है बद्रीनाथ। बद्रीनाथ मंदिर के एक पास में ही तप्त कुंड है जहाँ सदैव गर्म पानी रहता है। पांच से उपर का समय हो चुका था और अब माणा जाने का मतलब था कि आज हमें वहीं रुकना पडेगा। जबकि हम आज ही जोशीमठ तक वापस पहुंचना चाहते थे जिससे कल आराम से शाम तक हरिद्वार पहुंच सके। बस हाथ-पैर धुलकर, बद्रीनाथ जी के दर्शन करके प्रसाद खाया और 2-4 फोटो लेकर वापसी की राह पकडी। सात बजे जोशीमठ पहुंचे। एक होटल में रुम के लिए पता किया तो किराया 2500-2800 रुपये बताया गया। हमें तुरंत समझ आ गया कि ये जगह हमारे रुकने के लिए नही है। रात का समय था फिर भी हम आगे बढ चले और 7-8 किमी आगे आकर एक हाइड्रो साइट के पास एक होटल में पांच लोगों के लिए 800 रुपये में एक कमरा लिया। दिन भर के भूखे थे तो दबा के खाना खाया और पडकर सो गये। अगले दिन सुबह 8 बजे यहाँ से चले और शाम के 7 बजे तक आराम से हरिद्वार पहुंच गये।

एक और यात्रा पूरी हुई। आंखिर के दो दिन गांववाले दोस्तों के साथ खूब मजा आया। "पंडत" काफी टाइम से सतोपंथ ताल जाने के लिए कह रहा है। भगवान जाने वो वहां कौन सी स्वर्ग-सीढी देखना चाहता है? शायद अगले साल वहां जाना हो। खूब मजा आयेगा।

जय श्री बद्री-विशाल !!!!

आली की खूबसूरती 

आली बुग्याल में हमारा टेंट

सुबह की धूप में आलस

आली की खूबसूरती 

ओली (जोशीमठ) की तरह ही आली में भी बहुत सुंदर ढलान मौजूद है जहाँ सर्दियों में बर्फ पर विंटर गेम्स  आयोजित किये जा सकते हैं। मगर विडम्बना है कि आज तक इस ओर हमारी किसी सरकार ने कोई तवज्जो नही दी  है।  

नए -2 फोटोग्रफर की एक अच्छी फोटो



दूर सामने वाली पहाडी पर भेडों का झुंड 
सुंदर आली



बेदनी बुग्याल से आली आता हुआ रास्ता। ठीक सामने वो ढाबा और हमारा टेंट दिख रहे हैं। 
एक और फूल का क्लोजअप लेने की कोशिश 

आली से दिखता वृहद हिमालय - दांये नीलकंठ, बीच में राजा चौखंबा, और बांयी ओर केदारनाथ (इतनी ही चोटियों को पहचानता हूँ मैं इनमें से ) 

सामने वाण गांव दिख रहा है। 

आली का ढलान और उसके नीचे खत्म होती ट्री-लाइन

शायद घास पर पडी ओस का फोटो खींचने का प्रयास किया है। 

वापसी के समय नीलगंगा में कुछ लोग मटरगस्ती कर रहे हैं। 

ये मोबाइल से लिया है। 

राजमा के खेत

हेलंग के पास ऊनीमठ गांव में वृद्ध-बद्री

बद्रीनाथ में अलकनंदा 

जय श्री बद्रीनाथ 


भगवान की पूजा की रेट लिस्ट !
आप सभी का बहुत बहुत आभार!!!

इस यात्रा वृतांत के किसी भी भाग को नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करके पढा जा सकता है।
१. रूपकुंड ट्रैक - हरिद्वार से लोहाजंग
२. रूपकुंड ट्रैक - लोहाजंग से बेदनी बुग्याल
३. रूपकुंड ट्रैक - बेदनी बुग्याल से भगुवाबासा
४. रूपकुंड ट्रैक - भगुआबासा से रुपकुंड लेक और वापस आली बुग्याल
५. रूपकुंड से वापस हरिद्वार - बद्रीनाथ होते हुए

2 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार यात्रा का समापन।
    कुली मैंने आजतक नहीं लिये।
    ऐसी घटना के बाद जरुरत पडी तो पहले ही साफ साफ करना होगा।
    बद्रीनाथ भी दर्शन होने थे। बढिय़ा रहा।

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    1. हाँ भाई जी, अगली बार सारा कुछ पहले से ही क्लीयर करके चलुंगा। दरअसल मेरे पास टेंट और स्लीपिंग बैग नही था। अकेला मैं ये सब और साथ में अपना बैग लेकर उपर नही जा सकता था इसीलिए पोर्टर करना पडा। टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

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