गुरुवार, 30 जून 2016

तुंगनाथ यात्रा:चोपता,तुंगनाथ और देवप्रयाग

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देवरिया ताल से वापिस सारी में उतरने के बाद हम लोग चोपता के लिए निकल लिये। सारी से चोपता लगभग 25 किलोमीटर दूर ऊखिमठ-गोपेश्वर रोड पर ही स्थित है। क्या जबरदस्त रोड है यह ! प्राकृतिक खूबसूरती बिखरी पडी है पूरे रास्ते पर। लगता है मानो प्रकृति की गोद में सफर कर रहे हों। पूरे रोड पर आवजाही लगभग ना के बराबर है। पूरा इलाका केदारनाथ वाइल्ड-लाइफ सेंक्चुरी का है और जंगली जानवरों से भरा पडा है। दिनभर मे ऊखिमठ से केवल एक बस गोपेश्वर के लिए चलती है। बाकी दिन भर कोई सवारी का साधन नहीं। यानी अगर आपको इस रास्ते से गोपेश्वर जाना है तो या तो सुबह वाली बस पकडिये या फिर अपने वाहन से जायिए। पूरे रास्ते भर हमे केवल एक-दो टूरिस्ट वाहन ही मिले। अब तक की यात्रा का सबसे बढिया अनुभव था यह। रास्ते में द्गल्बिट्टा के पास एक जगह रुक कर हमने कुछ फोटो लिए। दुगलबुट्टा भी चोपता की तरह एक बुग्याल है और चोपता से लगभग लगा हुआ ही है। यहाँ कुछ टेंट भी लगे हुए थे जिन्हे देखकर हम तीनों के मुंह से एकसाथ निकला " यार, कल रात में यहीं रुकना था"।   सुबह 10 बजे के करीब हम लोग चोपता पहुंचे। चोपता में भी जबरदस्त खूबसूरती है। यहीं एक दुकान पर चाय- मैगी का आनंद लिया गया। पूरे भारत में उस समय हॉलाकि मैगी पर बैन लगा हुआ था मगर यहाँ पहले से ही इन लोगो ने मैगी का स्टोक जमा कर रखा था। आंखिर यहाँ आने वाले लोग मैगी के दीवाने जो होते हैं।

अपने-2 बैग यहीं दुकान पर रखकर करीब साढे दस बजे हम लोगों ने तुंगनाथ की ट्रैकिंग शुरू की। चोपता से तुंगनाथ का रास्ता अच्छा बना हुआ है और दूरी करीब साढ़े तीन या चार  किलोमीटर है। मगर जो चीज इस रास्ते पर थोड़ी मुश्किल है, वो है ऊंचाई। चोपता जहाँ करीब 2600 मीटर की ऊंचाई पर है वहीं तुंगनाथ 3800 मीटर के आस-पास है। आधा रास्ता तय करने पर एक दुकान आयी तो कोल्ड-ड्रिंक व पानी लिए गये। लगभग पूरा रास्ता ही बुगयाल से होकर जाता है इसीलिए चलने मे मजा भी खूब आता है। काफी सारे शॉट-कट भी मार लिए हम लोगो ने जिसके कारण आंखिर के एक किलोमीटर मे काफी थकान होने लगी थी। सांस भी फूलने लगी थी मगर हाँफते-2 लगभग ढाई-तीन घंटे मे हम लोग तुंगनाथ मंदिर पर पहुंच गये। साढे बारह बज रहे थे। जालिम बादलों ने सारी बर्फीली चोटियों को ढक लिया था। बादल इतने घने थे कि एक किलोमीटर दूर स्थित चंद्र्शिला चोटी तक नही दिख रही थी। इसीलिए हम लोगो ने चंद्रशिला जाना ठीक नही समझा और तुंगनाथ मे ही दो-ढाई घंटे बिताकर हम लोग वापिस चल दिये। वापसी के रास्ते मे एक दुखद घटना घट गई। शॉट-कट से उतरते समय एक जगह विनोद का पैर फिसल गया और मौच आ गयी। मगर बंदा फिर भी आराम से नीचे उतर आया। साढे तीन बज रहे थे। अभी भी दो घंटे तक उजाला रहेगा। चोपता मे उसी दुकान पर हल्का नाश्ता करके हम लोग वपिस ऊखीमठ के लिए निकल लिए। तय किया कि अंधेरा होने तक उखिमठ या जहाँ तक भी जा पायेंगे जायेगे ताकि सुबह आराम से चलकर देवप्रयाग मे संगम पर स्नान कर के वक़्त रहते हरिद्वार पहुंच सके। बडे आराम से अंधेरा होने तक हम लोग रुद्रप्रयाग पहुंच गये। होटल लिया और डिनर कर के सो गये।
अगले दिन सुबह आराम से सात बजे सोकर उठे। नाश्ता करके साढे आठ बजे तक निकले। लगभग साढे ग्यारह बजे देवप्रयाग पहुंचे। स्नान किया और दो केन गंगाजल के भर लिए जैसा कि घरवालो का हुक्म हुआ था। शाम के 4 बजे तक हम हरिद्वार पहुंच गये।
यह थी हमारी पहली यात्रा जो हमने सफलतापूर्वक पूरी कर ली थी। बस अब घुमक्कडी का जो ये कीडा हमारे जिस्म मे घुसा है तो उम्मीद है कि आगे इससे भी शानदार यात्रायें होंगी।
इस पोस्ट को झेलने के लिए आप सभी का धन्यवाद! चलो अब कुछ फोटो हो जाएँ।


देवरिया ताल से वापसी के समय ऊपर से दिखता सारी गांव

चोपता से थोडा सा पहले - दुगलबिट्टा का बुग्याल। है ना शानदार! बीच मे जो पट्टी सी दिख रही है वही उखीमठ-गोपेश्वर रोड है।

दुगलबिट्टा के पास

पहचान तो आप लोग गये ही होंगे !

बादलों तुम्हारा सत्यानाश हो ! तुमने सारी प्राकृतिक सुंदरता को छुपा लिया है।

ऊखीमठ-गोपेश्वर रोड और  उसके चारों तरफ फैला "केदारनाथ वन्य जीव अभ्यारण्य"


     


बादलों तुम्हारा फिर सत्यानाश हो !

तुंगनाथ में मंदिर के पास

तुंगनाथ में तीन हैदराबादी - हम तीनो ने भेल हैदराबाद में ही ज्वाइन किया था।

बम भोले

विवेक भाई मंदिर के पास फोटो खींचते हुए

मंदिर के ठीक नीचे स्थित कुछ दुकानें

देवप्रयाग में भागीरथी नदी पर बना एक झूला पुल

देवप्रयाग मे अलकनंदा और भागीरथी नदी का मिलन। यहाँ से आगे इसे गंगा के नाम से जाना जाता है।

संगम पर कोई अपने पुरखों का श्राद कर रहा है।

हर हर गंगे। संगम पर स्नान

गंगा जल भरता हुआ विवेक

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