2 अक्तूबर 2015
बात पिछले साल मई के महीने की है। विनोद
और विवेक ने नयी बुलेट ली थी। हम लोग प्लान भी बना रहे थे कि कहीं घूमने चलना है
जल्द ही। इसी बीच जून माह के अंत मे मेरा ट्रांसफर दिल्ली से हरिद्वार हो गया। मैं
जुलाई में हरिद्वार आ गया और विनोद भाई भावनगर साइट के लिए निकल लिए। चुंकि हम लोग
पॉवर क्षेत्र मे काम करते हैं तो हमारा साइट पर जाना लगा ही रहता है। मैंने भी
पिछले पांच साल की पॉवर क्षेत्र की सर्विस में काफी भारत घूम लिया था। खैर अब मैं
हरिद्वार आ गया हूँ तो अब साइट पर जाना खत्म। अब बस हिमालय मे घूमना है। विनोद से
बात की तो उसने बोला कि कोई बढिया सा ट्रिप प्लान कर लो। चुंकि जुलाई और अगस्त में
बारिश बहुत होती है और बारिश के दिनो मे उत्तराखंड के पहाड बहुत खतरनाक हो जाते
हैं। जगह-2 लैंड-स्लाइड होती रहती है जिसकी वजह से कभी-2 हफ्तों तक रास्ते बंद हो
जाते हैं। ऐसे मौसम में पहाड़ों पर जाना बिल्कुल भी बुद्धिमानी भरा फैंसला नही
होता। मगर घुमक्कडी का कीडा काटे जा रहा था और सितम्बर माह मे भी विनोद भाई
साइट पर थे तो अक्टूबर के पहले हफ्ते में यात्रा पर जाने की योजना बनने लगी।
2 अक्टूबर, गांधी जयंती शुक्रवार के दिन
पड रही थी। इसी के आस-पास 1 और/या 3 तारीख की छुट्टी लेकर सर्वसम्मति से यात्रा
करना तय हुआ। लेकिन जाना कहाँ है ये तय करने की जिम्मेदारी मुझे मिली। मैं इन 3-4
दिनों की यात्रा मे कोई अच्छी सी जगह घूमना और थोडी बहुत ट्रैकिंग भी करना चाहता
था। मैं नेट पर सर्च ही कर रहा था कि मुझे घुमक्कड “नीरज जाट” जी का देवरिया ताल,
तुंगनाथ से सम्बंधित एक ब्लॉग मिला। नेट पर थोडा और सर्च करने पर देवरिया ताल,
चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला ट्रैक के बारे में काफी कुछ जानकारी मिल गयी। इन सभी जगहो
में एक खास बात यह थी कि ये एक-दूसरे से केवल 25 किलोमीटर ही दूर हैं। देवरिया ताल
में 7138 मीटर ऊंची चौखम्भा चोटी का प्रतिबिम्ब दिखायी देता है। चौखम्भा, नंदा
देवी और कामेट के बाद उत्तराखंड की तीसरी सबसे ऊँची हिमालय चोटी है और गढ्वाल के
गंगोत्री पर्वतमाला रेंज मे स्थित है।
चोपता, ऊखीमठ-गोपेश्वर रोड पर ऊखीमठ से करीब 30 किलोमीटर दूर स्थित एक घास का मैदान है। पहाड़ों पर
लगभग 2500 मीटर की ऊंचाई से उपर घास के मैदान पाये जाते हैं और हमारे उत्तराखन्ड
में इन घास के मैदानों को बुग्याल कहा जाता है। चोपता भीं लगभग 2600 मीटर की उंचाई पर
स्थित एक ऐसा ही बुग्याल है। चोपता से लगा हुआ ही दुगलबिट्टा का बुग्याल है। इन दोनो सुंदर बुग्यालो के कारण ही चोपता को भारत का मिनी स्विट्जरलैंड भी कहा
जाता है। चोपता से ही तुंगनाथ-चंद्रशिला के लिए पैदल रास्ता जाता है। तुंगनाथ,
उत्तराखंड मे स्थित पंच-केदारो में से तीसरा केदार है। जी हाँ, उत्तराखंड में सिर्फ केदारनाथ नही बल्कि पांच केदार हैं। ये क्रमशः
केदारनाथ, मद्यमहेश्वर, तुंगनाथ,
रुद्रनाथ और कल्पेश्वर हैं। इनमे भी तुंगनाथ 3850 मीटर के साथ सबसे
ज्यादा ऊंचाई पर है। यही नही तुंगनाथ दुनियाँ मे सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थित
हिन्दू मंदिर है जो केदारनाथ और बद्रीनाथ से भी ज्यादा ऊंचाई पर है। पंच-केदार की
तरह ही उत्तराखंड मे पंच-बद्री भी हैं। जहाँ केदार भगवान भोलेनाथ को समर्पित हैं
वही बद्री भगवान विष्णु को समर्पित है। चोपता से तुंगनाथ जाने वाला रास्ता ही आगे
चंद्र्शिला चोटी तक जाता है जो 4000 मीटर ऊंची है।
मैंने विनोद और विवेक को बता दिया कि भाई
हम लोग देवरिया ताल-चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला की यात्रा करेंगे। देवरिया ताल
हरिद्वार से लगभग 220 किलोमीटर दूर है। प्लान किया कि पहले दिन हरिद्वार से चलकर
देवरिया ताल तक पहुंचेंगे और रात को वहीं रुकेंगे। फिर सुबह चोपता जायेंगे और
तुंगनाथ-चंद्रशिला की ट्रैकिंग करेंगे और तीसरे दिन वापिस आ जायेंगे। तय हुआ कि
विनोद और विवेक 1 अक्टूबर को ही शाम तक हरिद्वार आ जायेंगे और हम लोग 2 अक्टूबर की
सुबह अपनी यात्रा पर निकल लेंगे। मगर इसमे भी एक दिक्कत हो रही थी। दिल्ली के ही
दूसरे ऑफिस के हमारे एक सीनियर और उनके दोस्त भी अपनी-2 बीवियों के साथ इस यात्रा
पर हमारे साथ जाने वाले थे। विनोद ने बातों-2 में ही रिपन सर से हमारी इस यात्रा
का जिक्र कर दिया था। ये बात मुझे थोडी अच्छी नही लग रही थी। क्योंकि हम लोग अपने हिसाब
से यात्रा करना चाहते थे। खैर, ये लोग तो वैसे अलग ही अपनी कार से जायेंगे
जबकि हम लोग बुलेट पर होंगे तो ऐसा कुछ खास दिक्कत भी नही थी।
जैसे-2 यात्रा का दिन नजदीक आ रहा था मेरी
बेचैनी सी बढती जा रही थी। पेट मे मरोडे से उठ रहे थे। अजीब डर सा भी लग रहा था।
क्योंकि मुझे पहाड पर जाने मे चक्कर-उल्टी होते हैं। मेरे ट्रांसफर से पहले मई मे
ही मैं अपनी फैमिली के साथ नैनिताल और रानीखेत की यात्रा पर गया था तो मुझे और
आर्य को बडी दिक्कत हुई थी। हालाँकि बाइक पर यात्रा करने में पहाड़ों पर इस तरह की
परेशानियॉ नहीं होती और इससे पहले भी जब मैं 2008-09 मे टीवीएस मे रुद्रपुर में
नौकरी करता था तब हम बाइक से कईं बार नैनिताल-भीमताल गये थे और कोई दिक्कत नही
हुई थी। मगर इस बार हम काफी उपर तक जाने वाले थे इसलिए मैं यात्रा शुरू
होने से 1-2 दिन पहले ही उल्टी-चक्कर के लिए दवाई ले आया था जो बाद मे ऐसे ही
बेकार गयी।
एक तारीख की दोपहर बाद विनोद और विवेक
दिल्ली से निकल लिए और हरिद्वार आते-2 उन्हे रात के 9 बज गये। भगवान जाने कौन से
रास्ते से आये थे वो लोग। अभी तक मैं गेस्ट हाउस मे ही रह रहा था। हालाँकि मुझे कम्पनी की तरफ से घर
तो मिल गया था लेकिन अभी मैंन्टिनेंस का कार्य चल रहा था। डिनर करने के पश्चात हम
लोग सोने लगे तो नींद नही आ रही थी। किसी तरह बारह बजे तक जाकर हम लोग सोये और
सुबह 5 बजे ही आंख खुल गयी। रात को ही वो दिल्ली वाले सर लोग भी गेस्ट हाउस पहुँच
गये थे। तैयार होकर चाय पीने के बाद मै और विनोद उन सर से मिलने गये। अरे! इनको तो
मैं जानता हूँ ये तो हमारे हैदराबाद वाले सर हैं। जी हां, विवेक,
विनोद, मैं और रिपन सर हम सभी लोगो ने भेल में
हैदराबाद मे ही जॉइन किया था। और रिपन सर से मैं वही मिला था। चेहरा तो मुझे ठीक
से याद था बस नाम भूल गया था। सर ने भी मुझे तुरंत ही पहचान लिया। ये तो अपने ही
लोग हैं। अब मुझे कोई दिक्कत नही थी। एड्जस्ट करने मे कोई परेशानी नही होगी।
2 अक्टूबर की सुबह सात बजे विवेक, विनोद
और मैं, हम तीनों ने बुलेट्स पर अपनी पहली यात्रा का आगाज कर
दिया। सर लोगो को भी बता दिया कि केदारनाथ वाले रास्ते पर जाना है और आज की मंजिल
देवरिया ताल है। हरिद्वार से ऋषीकेश रोड़ पर ट्रैफिक ज्यादा होता है इसीलिए हम लोग
चीला के रास्ते से ऋषिकेश पहुँचे। चीला वाला रास्ता गंगा जी पार करके चंडी देवी
मंदिर के पास से राजा जी राष्ट्रीय पार्क होते हुए जाता है। और ऋषिकेश में फिर से
गंगा जी पार करके शहर की मेन रोड पर पहुँच जाते हैं। ऋषिकेश से गंगोत्री और
बद्रीनाथ के लिए दो अलग-2 रास्ते जाते हैं। हमें रुद्रप्रयाग तक बद्रीनाथ वाले
रास्ते पर ही जाना था तो हम इसी रास्ते पर बढ चले। ऋषिकेश से पूरा रास्ता गंगा नदी
के साथ-2 है। दो बैग हमने विवेक की बुलेट पर बांध रखे थे और मैं अपना बैग पीठ पर
लटकाए हुए था। करीब दस बजे के आस-पास बयासी मे हमने नास्ता किया, आलू के परांठे दही के साथ। बयासी से थोडा आगे चलने पर एक बहुत ही अच्छी
जगह दिखायी दी तो हम लोग रुक गये। करीब आधे घंटे तक फोटो खींचने के बाद हम लोग आगे
बढ चले।