शुक्रवार, 23 जून 2017

केदारनाथ दर्शन और वापसी की यात्रा

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03 मई, दिन बुधवार
आज तीन मई है।आज केदारनाथ के कपाट खुलने हैं। हम लोग - मैं, मोनू, विकास और "पंडत" कल शाम ही केदारनाथ पहुंच चुके हैं और यहाँ स्थित गढवाल मंडल विकास निगम वालों की टेंट नगरी के एक टेंट में रुके हुए हैं। इस टेंट में हम चारों के अलावा तीन बंगाली लोग और तीन अन्य किसी राज्य से आये लोग भी रुके हैं जो सुबह हमारे जागने से पहले ही निकल गये थे। कपाट खुलने का समय सुबह आठ बजकर पचास मिनट है। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी भी कपाट ओपनिंग सिरेमनी में शामिल होने और मुख्य पूजा करने के लिए केदारनाथ आने वाले हैं। अतः जाहिर है कि सबसे पहले मोदी जी ही पूजा करेंगे और उनके वापिस जाने के बाद ही आम श्रधालुओं की बारी आयेगी। यही सोचकर हम लोग सुबह देर तक सोते रहे। यहाँ रात में नींद भी बढिया आयी थी क्योंकि एक तो सोलह किलोमीटर पैदल चलकर थके हुए थे और फिर सब लोग अपने-2 स्लीपिंग बैग में घुसे थे तो खर्राटों वाली समस्या यहाँ नही आयी।

वैसे तो हम चारों ही एक नम्बर के सोतू और आलसी हैं। फिर भी सबसे पहले सुबह सात बजे मेरी ही आंख खुली। बाकी के तीनों को जगाया तो जाग तो गये लेकिन आलस इतना कि कोई भी स्लीपिंग बैग से बाहर निकलने को तैयार नही। हमारे अलावा इस टेंट में जो अन्य लोग थे वो तो कब के जा चुके थे और एक हम थे कि हिलने तक को तैयार नही थे। हम चारों में हर कोई दूसरे को उठने को बोल रहा था। अबे उठो, अबे उठो - करीब एक घंटे तक यही सिलसिला चलता रहा तब जाकर कहीं हम अपने स्लीपिंग बैग्स से बाहर निकले वो भी तब जब उपर आसमान में हेलिकॉप्टर गडगडाने लगे। सबसे पहले "पंडत" अपनी कांचली (स्लीपिंग बैग का नामकरण विकास ने कांचली कर दिया था ) से बाहर निकला।

फिर बस जल्दी से हम चारो फ्रेश होकर बाहर आ गये। मोदी जी और अन्य वी आई पी लोगों के आने का समय हो चुका था। हमारे टेंट के थोडा सा सामने की ओर ही हेलीपेड था और हम कल से यही सोचे बैठे थे कि मोदी जी इसी हेलीपेड पर उतरेंगे। मगर जब उनका हेलीकॉप्टर सीधा मंदिर की तरफ निकल गया तो हमें समझ आया कि मंदिर के बगल में भी एक हेलीपैड है। यहाँ मौजूद सभी लोगों की तरह हम लोग भी मोदी जी से मिलना चाहते थे मगर शायद अब ये सम्भव नही था। मंदिर यहाँ से करीब आधा किलोमीटर दूर था और पूरे रास्ते के चप्पे-चप्पे पर पुलिस वाले तैनात थे जो किसी भी शख्श को आगे नही जाने दे रहे थे। आम लोगों को आज सुबह सात बजे के बाद से मंदिर की तरफ नही जाने दिया जा रहा था। ढाबे, दुकाने सब बंद थी। हाँलाकि उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज जी अपनी पत्नी के साथ हमारे सामने वाले हेलीपैड पर ही उतरे, मगर उनको भी पीछे के रास्ते से मंदिर की ओर ले जाया गया। खैर, जीएमवीएन वालों ने अपने ऑफिस के बाहर ही टीवी लगा रखा था। जिस पर डीडी न्यूज संवाददाता "अनुपम मिश्र" केदारनाथ मंदिर के अंदर से लाइव टेलीकास्ट कर रहे थे। हमारी तरह के काफी लोग जो मंदिर तक नही पहुंच पाए थे, यहाँ टीवी के सामने जमे थे।

पूर्व निर्धारित समय पर केदार बाबा के कपाट खुले। मंदिर प्रांगण में मोदीजी, उत्तराखंड के गवर्नर कृष्णकांत पॉल जी, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज जी आदि "अति महत्तवपूर्ण" लोग दिखाई दे रहे थे। मुख्य पुजारी "रावल जी" ने मोदीजी से मुख्य पूजा कराई जिसके पश्चात मोदीजी वहां मोजूद लोगों से मिले - वो खुशनसीब लोग जो आज सुबह सात बजे के पहले-2 मंदिर तक पहुंच गये थे। वहां मौजूद एक आर्मी के जवान की बच्ची को पीएम साहब ने अपनी गोद में खिलाया, उससे बातें की और आशीर्वाद दिया। बस इतना लाइव टेलीकास्ट देखने के बाद हम लोग टीवी से सामने से हट गये। दरअसल हमें जोरों की भूख लगी थी और अभी-2 एक ढाबे वाले ने अपनी दुकान खोल दी थी। हम चारों सबसे पहले लपककर दुकान पर पहुंचे और चाय के साथ आलू के परांठों का ओर्डर दे दिया गया। मोदीजी करीब पंद्रह मिनट और केदारनाथ में रुके तथा जब हम नाश्ता कर रहे थे तब उनका हेलीकॉप्टर हमारे उपर से निकल गया। जोरों की भूख के बावजूद भी मुझसे एक परांठे से ज्यादा नही खाया गया। अब लोगों को आगे मंदिर तक जाने दिया जाने लगा। जल्दी से अपना नाश्ता निपटाकर हम लोग भी भोलेनाथ से मिलने को चल पडे।

मंदिर के रास्ते में हमें उत्तराखंड पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज अपनी पत्नी के साथ आते हुए मिले। वो शायद अभी जीएमवीएन के अधिकारियों के साथ मीटिंग करेंगे और यात्रा की तैयारियों का जायजा लेकर दोपहर बाद यहाँ से निकलेंगे। रास्ते में एक-दो जगह हम लोगों को केदारनाथ त्रासदी के निशान भी देखने को मिले। मंदिर के करीब पहुंचे तो देखा रास्ते के दोनो ओर भक्तों की लम्बी कतारें लगी थी। कम से कम मुझे आज पहले ही दिन केदारनाथ में इतनी भीड की उम्मीद नहीं थी। दोनो ओर कई-कई लाइनें बन रही थी। हम लोग बडे भोलेपन से एक लाइन में सबसे पीछे खडे हो गये। मगर करीब 20-25 मिनट बाद ही हमें ज्ञान हो गया कि भाई ऐसे तो शाम तक दर्शन होने से रहे। लोग साइडों से आगे जा रहे थे। दूसरी ओर तो पांच-पांच लाइन हो गयीं थी। "आंखिर क्या जुगाड है? " ये देखने के लिए मैं और मोनू आगे गये और एक जगह हिसाब सा देखकर एक साइड लाइन में खडे हो गये। विकास और "पंडत" को बोलकर आये ही थे कि हम ना आयें तो 10-15 मिनट में तुम लोग भी आगे आ जाना, सो थोडी देर बाद वो दोनों भी हमारे पास आ पहुंचे। बस अब तो हमारे आगे सौ सवा सौ ही लोग थे। इसी बीच दूसरी ओर भीड बेकाबू होने लगी और उन्होनें बांस-बल्ली की बैरिकेडिंग भी तोड डाली। सभी पुलिस वालों ने धीरे-2 पहले उन लोगों को आगे भेजा तब जाकर हम लोगों की आगे जाने की बारी आयी।

साढे बारह - पौने एक बजे के करीब हम लोगों ने केदारनाथ बाबा के दर्शन किये जिसके पश्चात मंदिर के पीछे स्थित हनुमान सिला देखी। केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे एक पत्थर की बहुत बडी शिला है। त्रासदी के समय ये शिला उपर से मलबे से साथ आयी थी और मंदिर के ठीक पीछे आकर लग गयी थी। इस शिला की वजह से ही मंदिर को कोई नुकसान नही हुआ था वरना आपदा तो इतनी भयानक थी कि शायद मंदिर को बहुत ज्यादा क्षति होती। इसी शिला को अब लोग हनुमान शिला के नाम से पूजने लगे हैं। यहाँ से उपर, पहाड की तरफ देखने पर सिर्फ पत्थर और मलबा ही दिख रहा था। मंदिर से करीब दो किलोमीटर उपर की ओर चोराबाडी ग्लेशियर है जो मंदाकिनी नदी का उद्गम स्थल है। मेरी योजना तो चोराबाडी तक जाने की थी मगर सभी के साथ चलना भी मजबूरी होती है। इसलिए बस भोलेनाथ के दर्शन करके ही हम लोग वापस लौट चले। जैसा कि ऊंचाई वाले पहाडी इलाकों में दोपहर बाद अक्सर होता है, हल्की-हल्की बारिश होना शुरू हो गयी थी। तेजी से हम लोग अपने टेंट पहुंचे और रेनकोट पहनकर भोलेनाथ की जय बोलकर अपनी वापसी की पैदल यात्रा शुरू की।

वापसी के समय कुछ भी परेशानी नही हो रही थी। लगभग पूरा ही रास्ता उतराई वाला है। करीब पौने दो घंटे में ही हम लोग छोटी लिनचोली पहुंच गये।बारिश थोडी तेज हो गयी थी और भूख भी जोरो से लग रही थी। सुबह के परांठे तो कब के पच चुके थे। रोटी सब्जी का बंदोबस्त तो यहाँ था नही बस चाय-मैगी और बिस्किट से ही काम चलाना पडा। करीब आधा घंटा छोटी लिनचोली में रुककर हम लोग आगे के रास्ते बढ चले। करीब 40 मिनट में भीमबली पहुंच गये। यहाँ वो डमरू वाले बाबाजी मिले जो केदारनाथ जाते समय मिले थे। वो यहाँ एक छोटे से हनुमान मंदिर में डेरा जमाये हुये थे। बाबा जी के पास भी हमने पांच मिनट का रेस्ट लिया। पांच से ज्यादा बज चुके थे और गौरीकुंड अभी भी छह किलोमीटर दूर था। आज दर्शन करने वाले श्रधालुओं में से अधिकतर वापस आ रहे थे और वो सभी लोग भी शायद गौरीकुंड में ही रुकेंगे। और इनके साथ-2 कल केदारनाथ जाने वाले यात्री भी आज रात को गौरीकुंड में ही स्टे करेंगे। इसलिये आज गौरीकुंड में कमरा मिलना मुश्किल से भी ज्यादा होग यही सोचकर हम लोगों ने फैंसला लिया कि जल्दी-जल्दी चलकर गौरीकुंड पहुंचते हैं और उसके बाद सोनप्रयाग या आगे के लिए निकल जायेंगे। बस फिर क्या था? हम लोगो ने गौरीकुंड की तरफ रेस लगा दी।

हल्का-हल्का दिन छिप सा गया था जब हम गौरीकुंड पहुंचे। सीधे पार्किंग स्थल पहुंचे जहाँ हमारी स्कूटी पिछले दो दिनों से हमारा इंतजार कर रही थी। हाँलाकि एक चाय का मन हो रहा था मगर टाइम नही था सो बिना देर किये आगे निकल लिये। सोनप्रयाग के रास्ते में ही पूरा अंधेरा हो गया था। सोनप्रयाग पहुंचे तो यहाँ भी बडी निराशा हुई। कहीं कोई कमरा नही मिल रहा था। बडी मुश्किल से काफी अंदर के एक होटल में 1000 रुपये का एक कमरा मिला। सिर्फ 4-5 घंटों में ही 16 किलोमीटर की पैदल यात्रा की थी। थकान तो हो ही गयी थी। बस डिनर किया और पड कर सो गये।

अगले दिन सुबह आराम से सोकर उठे। नाश्ता करके करीब पौने नौ बजे सोनप्रयाग से चले। जैसा मैंने अपनी पहली पोस्ट में बताया केदारनाथ यात्रा पर आते समय हम लोगों का प्लान था कि केदारनाथ-तुंगनाथ और बद्रीनाथ दर्शन करके चलेंगे। मगर "पंडत" को कल तक घर पहुंचना है इसलिए वो प्रोग्राम रद्द कर दिया था। मगर आज जैसे ही गुप्तकाशी से आगे कुंड के पुल पर पहुंचे तो मैंने स्कूटी तुंगनाथ की ओर मोड दी और थोडा सा आगे जाकर रुक गये कि चलो "पंडत" के थोडे से मजे लेते हैं। विकास और "पंडत" थोडा पीछे थे। विकास ने जैसे ही हमें उस ओर जाते देखा तो उसने भी अपनी स्कूटी उधर ही मोड दी। बल्कि वो तो काफी तेजी से आगे की तरफ निकल गया। "पंडत" पीछे से चिल्ला रहा था। "अबे, इधर कहाँ जा रहे हो। मेरे पास टाइम नही है। ड्रामा मत करो, वापस घर चलो।" खैर, थोडी देर "पंडत" के मजे लेकर हम वापस चल दिये। बस अब न जाने कब इधर आना हो!

हरिद्वार वापसी के रास्ते में हम लोग कुछ समय देवप्रयाग में रुके। यहाँ मंदाकिनी और अलकनंदा के संगम पर स्नान किया तो दो साल पहले की गयी तुंगनाथ यात्रा की याद ताजा हो गयी। तब भी हम लोग वापसी के समय यहाँ नहाये थे। आराम से शाम के आठ बजे तक हम हरिद्वार पहुंच गये। हमारी केदारनाथ यात्रा सफलतापूर्वक पूर्ण हो गयी थी। हालांकि तुंगनाथ और बद्रीनाथ नही जा पाये थे इसका अफसोस जरूर रहेगा। अपने बचपन के दोस्तों के साथ यात्रा करने में काफी आनंद आया। उम्मीद है ऐसी और यात्रायें आगे भी होंगी। आप सभी का बहुत बहुत आभार !!!


सुबह के समय केदारनगरी

सतपाल महाराज जी का हैलीकॉप्टर हमारे टेंट के सामने वाले हैलीपैड पर लेंड हो रहा है।

हैलीपैड पर खडा सतपाल महाराज का हैलीकॉप्टर

2013 त्रासदी के कुछ अंश अभी तक केदारनाथ में मौजूद हैं।

मोदी जी के जाने के बाद केदार दर्शन के लिए लगी भक्तों की लम्बी-2 कतारें



बस पहुंच ही गये हम लोग

जय बाबा केदार

केदारनाथ मंदिर के ठीक पीछे की तरफ का नजारा

यही वो हनुमान शिला है जो त्रासदी के समय मंदिर के पीछे आकर लग गयी थी और उस जलजले से मंदिर केदारनाथजी की रक्षा की थी।

आपदा के समय मंदिर के बांयी ओर वाले गेट में आयी दरार और उस पर लगी स्पोर्ट

दर्शन के पश्चात बाबा के धाम में अंतिम फोटो

वापसी के समय विकास और उसकी "मोर्चरी वाली पन्नी"

हरिद्वार वापसी के रास्ते में देवप्रयाग में संगम पर


इसी सब के साथ अथ श्री केदारनाथ यात्रा समाप्त। हर हर महादेव।