गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017

रुपकुंड ट्रैक: दूसरा दिन - लोहाजंग से बेदनी बुग्याल

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01 अक्टूबर, 2017
जैसा कि पिछली पोस्ट में बताया जा चुका है कि कोई साथी न होने की वजह से मैं अकेला ही रुपकुंड ट्रैक पर निकल गया था और कल हरिद्वार से चलकर लोहाजंग तक पहुंच गया था। आज मेरी योजना लोहाजंग से चलकर बेदनी बुग्याल तक पहुंचने की थी। उसके लिए पहले स्कूटी से 12 किमी दूर वाण गांव पहुंचना होगा और फिर वहां से 12 किमी ट्रैकिंग करके एक बहुत ही खूबसूरत कैम्प साइट बेदनी बुग्याल पहुंचा जायेगा। टेंट, गाइड इत्यादि सबका बंदोबस्त कल मैंने लोहाजंग आने पर कर लिया था। इसलिये आज आराम से साढे छहः बजे सोकर उठा। फ्रैश होकर नास्ता पानी करके अपने गाइड/पोर्टर गजेंद्र को फोन किया तो वो बोला भाई जी बस मैं निकल रहा हूँ अपने यहाँ से, आधे घंटे में आपके पास पहुंच जाउंगा। तब तक अपना टाइम काटने के लिए मैं कुछ इधर - उधर की फोटो लेने लगा। करीब एक - सवा घंटा इंतजार करने पर गजेंद्र आया और फिर वन विभाग वालों से पर्ची कटा कर, अपना टेंट, स्लीपिंग बैग इत्यादि लेकर करीब साढे आठ बजे हम लोग वाण के लिए निकल लिये। वन विभाग वाले एक दिन का टेंट लगाने का सौ रुपया लेते हैं। हम तीन रात रुकने वाले थे तो तीन सौ रुपये हुए। बाकि और इधर - उधर के चार्ज मिलाकर कुल पांच सौ रुपये लिये हमसे वन विभाग वाले ने। हाँ रसीद जरूर ली मैंने उससे इस सबकी। लोहाजंग एक दर्रे जैसा है जिसके दोनो तरफ हल्की ढलान है। चार किलोमीटर आगे कुलिंग गांव मिला। यहाँ से एक रास्ता दीदना होते हुए आली बुग्याल जाता है और ज्यादातर ट्रैकर व ट्रैकिंग एजेंसियां रुपकुंड जाने के लिए इसी रास्ते का उपयोग करते हैं। कुलिंग से नीचे उतरकर नीलगंगा नदी का पुल पार करना होता है और फिर उपर दीदना, आली बुग्याल तक पूरा चढाई वाला रास्ता है। इस रास्ते से जाने वाले ज्यादातर लोग दीदना के उपर दीदना कैम्पिंग ग्राउंड में एक रात रुकते हैं। दीदना में लोगों ने अपने घरों को होमस्टे में बदल रखा है जिनका उपयोग ज्यादातर ट्रैकिंग एजेंसियां करती हैं। खैर, अपने को तो इस रास्ते से नही जाना था तो हम लोग आगे वाण की ओर बढ चले। 

करीब सवा नौ बजे वाण पहुंचे और बिना ज्यादा वक्त गंवाए वहीं पार्किंग स्थल पर एक ओर सडक के किनारे स्कूटी खडी करी और अपनी आज की पैदल यात्रा की शुरुआत कर दी। हेलमेट जरुर पार्किंग के सामने वाले एक ढाबे पर रख दिया था। वाण से रणकाधार तक हल्की चढाई है और पूरा रास्ता खेतों से होकर जाता है। वाण वालों ने राजमा,दाल,चौलाई आदि बो रखा था। कहीं - कहीं आडू, नीम्बू और माल्टा वगरह के फलदायक पेड भी गांव वालों ने लगा रखे हैं। शुरु में हल्की सी चढाई में भी जल्दी थकान होने लगी तो ऐसी ही एक जगह एक पेड से आडू तोडकर खाये। खट्टे मीठे आडू खाकर बचपन के दिनों की याद आ गयी जब हम लडकों की टोली की टोली गांव के रजवाहे में नहाने जाती थी और उसी के पास "बाबू जी" के खेत में खडे पेड के आडू निपटाये जाते थे। हम आराम से आडू खाते हुए आगे बढे तो रणकाधार से करीब पचास मीटर पहले किसी ने पास के एक घर से आवाज लगाई, "अरे,मोहित सर"। मैंने सोचा यार यहाँ कौन आ गया "मोहित सर" वाला। फिर भी मैं "हाँ भाई" कहकर उस घर की ओर बढ गया। पास जाकर देखा तो हमारे बीएचईएल हरिद्वार के ही कई लोग मिल गये। दो शादीशुदा लोग अपनी पत्नियों के साथ व एक अकेला जना था। इनमें से एक पर्चेज विभाग का रवि पुनेथा था जिसने मुझे आवाज लगाई थी। दरअसल रुपकुंड जाने से 5-7 दिन पहले मेरी रवि से बात भी हुई थी तो वो अपनी वाइफ और एक अन्य कपल के साथ रुद्रनाथ या बेदनी बुग्याल जाने का प्लान बना रहा था। उस समय रुद्रनाथ की थोडी ज्यादा बात हुई थी तो मुझे लगा शायद ये लोग उधर जायेंगे। रवि भी काफी घूमता रहता है और इसने रुपिन पास सहित कई ट्रैक कर रखे हैं। ये लोग भी कल ही हरिद्वार से यहाँ बाइक से आये हैं और 2500 रुपये पर बंदे के हिसाब से वाण-बेदनी बुग्याल-आली बुग्याल-वाण का तय किया है -रहना, खाना, वन विभाग शुल्क सबकुछ मिलाकर। खैर हाय-हैलो करके हम सब लोग आगे बढे और इसके बाद बेदनी तक हम साथ ही रहे।

रणकाधार पहुंचकर हम सबने चाय पी। यहाँ भी वन विभाग का एक कर्मचारी है जिसने मेरी पर्ची चेक की और रवि लोगो के गाइड से सम्बंधित शुल्क लेकर उनको पर्ची दी। यहीं से त्रिशुल चोटी के प्रथम दर्शन भी हुए। लगभग पंद्रह मिनट यहाँ रुककर हम आगे बढ चले। रणकाधार से आगे नीलगंगा के पुल तक करीब आधा किलोमीटर की उतराई है। पुल पार करते ही जंगल शुरु हो गया और जोरदार चढाई भी। अब यह जंगल और ये चढाई सीधे बेदनी जाकर ही समाप्त होगी। रवि लोगों के मिलने के बाद से गजेंद्र की मेरे साथ चलने की मजबूरी का भी समाधान हो गया। अब वो अपने हिसाब से चल सकता है। हम सब लोग धीरे -धीरे चलने लगे जबकि हमारे गाइड/पोर्टर हमसे आगे निकल गये। करीब दो -ढाई किलोमीटर की चढाई के बाद एक जगह एक ढाबा मिला। यहाँ बुरांश का जूस पिया और कुछ हल्का -फुल्का खाया। थोडा आराम करके हम लोग आगे बढ चले।

पौने एक बजे के करीब गैरोली पाताल पहुंचे। गैरोली करीब 3050 मीटर की हाइट है, जबकि मेरे फोन के अल्टमीटर एप में तो ये 3100 मीटर के करीब दिखा रहा था। यहाँ कुछ ढाबे वाले थे, दो-तीन झोंपडियां थी और इंडिया हाइक वालों की कैम्पिंग साइट थी। जहाँ बीस - पच्चीस टेंट्स लगे हुए थे। इंडिया हाइक, ट्रैक द हिमालया आदि बडी-बडी ट्रकिंग कम्पनियां ट्रैकिंग़ सीजन शुरु होते ही रुपकुंड ट्रैक पर पडने वाले सभी मुख्य पडावों पर अपने टेंट्स गाड देती हैं और जम के लोगों को ट्रैकिंग कराती हैं। हाँ, ऑब्वियसली काफी हाई रेट पर। रुपकुंड ट्रैक अब पूरी तरह से कमर्शलाइज हो गया है और पूरे सीजन आपको यहाँ ट्रैकरों का रेला मिलेगा। जिनमें से अधिकतर पैसे वाले लोग मिलेंगे जो इन ट्रैकिंग कम्पनियों के सहारे कम से कम छह दिनों में रुपकुंड की यात्रा करते हैं। गैरोली पाताल में हमने लंच किया -दाल चावल। गैरोली पाताल से बेदनी बुग्याल दो- ढाई किलोमीटर रह जाता है। हम आराम से दो बजे के करीब यहाँ से चले।

डौलियाधार वो जगह है जहाँ से आगे जंगल खत्म हो जाता है और बेदनी बुग्याल की सीमा प्रारम्भ हो जाती है। जबकि बेदनी कैम्प साइट अभी भी आधा किलोमीटर दूर है। अब रुपकुंड तक कोई पेड नही मिलेगा। मिलेंगे तो बस दूर -दूर तक फैले बुग्याल और उसके बाद पत्थर व चट्टानें।

बेदनी बुग्याल -- समुद्रतल से करीब 3450 मीटर की उंचाई पर स्थित एक बडा सा घास का मैदान है बेदनी। बुग्याल शब्द का अर्थ गढवाली में घास का मैदान होता है। उत्तराखंड में करीब 3000 मीटर की उंचाई के आसपास काफी घास के मैदान मिलते हैं जिन्हे बुग्याल कहा जाता है। बेदनी, आली, पंवालीकांठा, दयारा बुग्याल, चोपता, औली-गौरसों आदि उत्तराखंड के कुछ प्रसिद्ध बुग्याल हैं। बेदनी बुग्याल में बहुत सारे टेंट लगे हुए थे। यहीं एक ठीक सी जगह देखकर हमनें भी अपना टेंट लगा लिया। मुझे और गजेंद्र दोनों को ही टेंट लगाना नही आता है। एक लोकल बंदे ने हमें टेंट लगाना सिखाया। रवि लोगों के टेंट हमसे कुछ दूरी पर थे। आज की थकावट मिटाने के लिए थोडी देर अराम करने के बाद मैं बाहर टहलने निकला। अभी शाम हो रही थी और जैसा कि हिमालय में अक्सर होता है आकाश घनें बादलों से पटा पडा था। थोडा नीचे किसी ट्रैकिंग़ कम्पनी के बहुत से टेंट लगे हुए थे और उनके सामने बहुत सारे लोग खेल रहे थे या एयरोबिक्स कर रहे थे शायद। थोडा बहुत घूमकर,कुछ फोटो खींचकर मैं वापस अपने टेंट में लौट आया। हाँ, एक पतली सी मगर मजबूत बांस की डंडी जरूर मिल गयी थी जिसने अगले दो-तीन दिन रुपकुंड जाने और आने में पूरा साथ दिया।

वाण गांव की तरफ आती लोहाजंग - वाण रोड 

वाण की पार्किंग में गाडियों के उस तरफ खडी अपनी धन्नों 

वाण वालों के चौलाई के खेत - हाँ हाँ, चुलाई जिसके लड्डू बनते हैं।  

और कुछ खेत 

रणकाधार से नीचे नीलगंगा के पुल की ओर उतरता रास्ता 


यही रणकाधार है। कुछ लोग वन विभाग के पर्ची काटने वाले बंदे को घेरे हुए हैं। 

नीलगंगा 

गैरोली पाताल में इंडियाहाइक वालों की कैम्प साइट 


राहुल - ये रवि लोगों के ग्रुप में अकेला बंदा था बाकि दोनों लोग तो अपनी-अपनी पत्नियों के साथ थे। राहुल मूल रूप से हिमाचली है और कुगती पास सहित न  जाने कितने ट्रैक इसने कर रखे हैं। 


गजेंद्र - मेरा गाइड/पोर्टर

डौलियाधार - और यहाँ से बेदनी बुग्याल की सीमा प्रारम्भ 
डौलियाधार से थोडा उपर एक जगह रवि उसकी पत्नी और राहुल


बेदनी में भेड और सामने कैम्प साइट 
बेदनी में 

बेदनी की खूबसूरती 


बेदनी में टेंट नगरी - सामने कुछ लोग एरोबिक्स कर रहे हैं। 




सीनरी वाली फोटो 

अगले दिन सुबह सुबह त्रिशुल चोटी 
अगले भाग में जारी.........

इस यात्रा वृतांत के किसी भी भाग को नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करके पढा जा सकता है।
१. रूपकुंड ट्रैक - हरिद्वार से लोहाजंग
२. रूपकुंड ट्रैक - लोहाजंग से बेदनी बुग्याल
३. रूपकुंड ट्रैक - बेदनी बुग्याल से भगुवाबासा
४. रूपकुंड ट्रैक - भगुआबासा से रुपकुंड लेक और वापस आली बुग्याल
५. रूपकुंड से वापस हरिद्वार - बद्रीनाथ होते हुए

2 टिप्‍पणियां:

  1. दो यात्रा इस बुग्याल की है शानदार जगह है।
    पवांली इससे भी सुन्दर है।

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  2. जी भाई। बेदनी-आली दोनो शानदार हैं। उपर वाले ने चाहा तो जल्द ही पंवाली भी देखा जायेगा।

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