बुधवार, 24 अगस्त 2016

श्रीखंड महादेव यात्रा: जांव से थाचडू

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25 जुलाई और दिन सोमवार। यानी दिन भी महादेव का और यात्रा भी महादेव की। हम दो जने, मैं और अनंत अपने श्रीखंड अभियान पर थे। और कल सुबह हरिद्वार से चलकर शाम तक बागीपुल तक पहुंच गये थे। 25 की सुबह हम लोग बागीपुल से जांव पहुंचे। जांव पहुंचकर ही हमें पता चला कि आज श्रीखंड यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन का आंखिरी दिन है।  हमने तो सुना था कि यात्रा 15 से 31 जुलाई तक चलती है! मगर प्रशासन वाले 25 जुलाई को ही रजिस्ट्रेशन बंद कर देते हैं। पिछले तीन सालों से श्रीखंड यात्रा का आयोजन और देख-रेख का कार्य "अन्नी" प्रशासन ने सम्भाल रखा है। पुलिस, प्रशासन और रेसक्यू टीम की जिम्मेदारी सरकार की है यानी एसडीएम "अन्नी" की। इससे पहले तो सरकार और प्रशासन का इस यात्रा पर कोई ध्यान ही नहीं था पूरी यात्रा बस श्रीखंड सेवा समिति के जिम्मे ही थी। बस फिर क्या था ! हमने एक जगह "सशुल्क" पर्किंग में बाइक खडी की और नाश्ता करके अपनी पैदल यात्रा की शुरूआत कर दी। रजिस्ट्रेशन सिंहगाड में होते हैं जो जांव से तीन किलोमीटर दूर है। रास्ता लगभग सीधा-2 सा ही है और पूरा रास्ता खेतों से होकर जाता है। अच्छी धूप निकली थी। जांव से सिंहगाड पहुंचने में हमें एक - सवा घंटा लगा। 

सिंहगाड में हमारा रजिस्ट्रेशन हुआ और ये जानकर हमें काफी हैरानी हुई कि हमारा नम्बर 4750 के आस-पास है। मतलब अब तक 5000 से भी कम यात्री आये हैं इस यात्रा पर तब जबकि आज रजिस्ट्रेशन का आंखिरी दिन है। ये यात्रियों की भारी कमीं को दर्शाता है। जहाँ अमरनाथ यात्रा में एक दिन में ही कई हजार यात्री आते हैं वहींं यहाँ पूरी यात्रा में इतने यात्री नहीं आते ! शायद यहाँ अमरनाथ जैसी सुविधा नही है इसलिए। हो सकता है आगे आने वाले समय में यहाँ सुविधाये हो जायें तो यहाँ आने वाले यात्रियों की संख्या भी बढ जाये। सिंंहगाड में ही हमारा मेडिकल चैकअप भी हुआ। बस नाम मात्र का ! डॉक्टर ने ना बी०पी० चैक किया ना शुगर वगरह ! बस हमसे इतना ही पूछा कि कोई सीरियस बीमारी तो नही है। हमने कहा "नही है"। बस हो गया हमारा मेडिकल ! सिंहगाड में ही हमें हमारा तीसरा साथी मिला। गंगाराम। हमारा पोर्टर, जिसके बिना शायद हमारा इस यात्रा को पूरा कर पाना सम्भव नहीं था। वो यहाँ एक टेन्ट में बैठा बीडी पी रहा था। हमें देखकर बोला "कोई पोर्टर चाहिये क्या?" उधर हम दोनो भी किसी पोर्टर की तलाश में थे ही। धूप में कमर पर बैग लाधकर चलना मुश्किल हो रहा था।
हमने पूछा " कितना लोगे"
"800 रुपये रोजाना"
" ये तो बहुत ज्यादा हैं भाई, हम तो इतने ना देंगे"
"और कितने दोगे आप"
"हद से हद 500 रुपये, उससे ज्यादा नही", मैंने कहा। 
अन्त में 500 रुपये और खाना अलग से तय हो गया। और हमनें अपने-2 बैग गंगाराम को दे दिये। रास्ते में से ही दो लट्ठ भी मिल गये थे। अतः अब हमें कोई दिक्कत नही थी। 

सिंंहगाड से निकलते-निकलते हमें 12 बज गये। भूख भी लग रही थी। तमाम भंडारे वालों ने भी प्रशासन वालों की तरह ही यात्रा समाप्ति की घोषणा कर दी थी। अर्थात वो भी अपना ताम-झाम लेकर जा चुके थे। सिंंहगाड से निकलते ही रामपुर वाले एक बाबा जी का टेंट मिला। यहाँ हमें हलवा और ग्लूकोज वाला पानी मिला। और शायद यहीं मेंरा चश्मा भी गिर गया। हालांकि आगे उसकी इतनी जरूरत भी महसूस नहीं हुई क्योंकि अगले कईं दिन तक ऐसी कुछ खास धूप निकली भी नही। खैर बाबा जी के यहाँ हलवा और पानी पीकर हम लोग आगे बढे। सिंहगाड से 2 किलोमीटर आगे बराठी नाला है। पूरा रास्ता कृपाण खड्ड के साथ-2 है। ये दो किलोमीटर का रास्ता ही आपको अहसास दिला देता है कि आगे की यात्रा कैसी होने वाली है।  सीधे रास्ते से लेकर खडी चढाई और उतराई, तेज बहती नदी - कृपाण खड्ड के उपर चट्टान के किनारे-किनारे लैंटर डालकर बनाया गया लगभग एक फुट चौडा रास्ता। कोई सामने से आ जाये तो बचना भी मुश्किल और उपर से बरसात का महीना - अक्सर बारिश होती रहती है।  लगभग दो बजे हम लोग बराठी नाले पर पहुंचे। यहाँ हरिद्वार वाले एक बाबा जी का आश्रम है जिसमें हमनें वापसी के समय चाय और शक्कर पारे खाये। बराठी नाले पर एक लकडी का पुल है जिसे पार करके हम दो नदियों के बीच में आ जाते हैं। मतलब ! हमारे एक तरफ एक नदी और दूसरी तरफ दूसरी नदी। यहीं से शुरू होती है डन्डाधार की अनंत चढाई ! जो कि आठ किलोमीटर दूर कालीघाटी तक बरकरार रहती है। बराठी नाले से थाचडू पांच किलोमीटर दूर है जहाँ हमें आज रात को रुकना है। 

डन्डाधार लगभग सत्तर डिग़्री की कभी ना खत्म होने वाली सीधी खडी चढाई है। बीच में मुश्किल से दो - चार जगहेंं ही ऐसी हैं जहाँ 2-3 मीटर का समतल हिस्सा है। डन्डाधार श्रीखन्ड यात्रा का पहला कठिन हिस्सा है। और अच्छे से अच्छा पहाड चढने वाला भी यहाँ प्रकृति के सामने बेबस नजर आता है। करीब डेढ-दो किलोमीटर चढने पर एक जगह हम लोग चाय के लिए रुके। यहाँ यात्रा करके वापस आने वाले कई यात्री रुके हुए थे। वैसे तो पूरी श्रीखंड यात्रा में तीन मुख्य पडाव हैं - सिंंहगाड, थाचडू और भीमद्वारी। मगर हर एक-दो किलोमीटर पर टेंट लगे हुए मिल जाते हैं। यहाँ रुके हुए यात्रियो में से एक के पास बीएसएनएल का एक सिम था। उसने वो हमें ये बोल के दे दिया कि उसे कहीं पडा मिला है, देख लो अगर तुम्हारे काम आ जाये तो। अनंत ने वो सिम अपने फोन मे डाल लिया। गंगाराम ने बताया कि रास्ते मे कई जगह सिगनल मिलेगा जहाँ बात हो सकती है। पूरी यात्रा में वो सिम भी हमारे बडे काम आया। धीरे-2 चलते हुए हम लोग अपने अगले लक्ष्य थाटी-बील  तक पहुंचे।  थाटी-बील थाचडू से करीब डेढ किलोमीटर पहले है। हालत खराब थी ! थकान से बुरा हाल था और पूरा शरीर पसीने-पसीने हो रख्खा था। हम बार-बार गंगाराम से पूछते कि भाई और कितना दूर है थाचडू? और वो हर बार यही कहता " बस एक घंटे में पहुंच जायेंगे।" थाटी-बील में 10-15 मिनट आराम कर के हम लोग आगे बढे।

करीब सात बजे हम लोग "मर - खप कर" अर्थात बुरी तरह थक कर थाचडू पहुंचे। यहाँ बीएसएनएल का सिगनल आ रहा था। चेक किया इस सिम में सत्तर रुपये पडे हुए थे ! जय हो श्रीखंड बाबा ! कुछ देर आराम करके "श्रीमती जी" को फोन करके बता दिया कि सही सलामत हैं थाचडू पहुंच गये हैं। भोले बाबा कि कृपा से ये सिम मिल गया है। इसपर अभी कल भी बात हो जायेगी। चिंता मत करना ! इत्यादि ! टेंट वाले के पास गैस खत्म हो गयी थी तो उसने चूल्हे पर गर्मा-गर्म रोटियां बनाकर खिलायी। कसम से बहुत दिनो बाद चूल्हे की रोटी खाकर स्वाद आ गया। बुरी तरह थके हुए थे तो बस डिनर करते ही अपने टेंट में पहुंचकर डबल-डबल कम्बल व रजाई लेकर सो गये।

जांव - गांव से पीछे का नजारा। सडक किनारे जो बिल्डिंग दिख रही है उसी में वो "स-शुल्क" पार्किंग थी जहाँ हमने अपनी बाइक खडी की थी।

जांव से पैदल यात्रा की शुरूआत - धांसू अंदाज में !

जांव में लगे भंडारे वालो के बैनर। हाँलाकि भंडारे वाले आज जा चुके हैं। 


जांव से सिंहगाड रास्ता और आने - जाने वाले यात्री।


कृपाण खड्ड - नदी। पानी देखो कितना दूधिया और शुद्ध है। श्रीखंड महदेव के पास से जो आ रहा है !

चौधरी साब ! स्टाइल सा मारते हुए !!
बहुत गरमी है भाई !!

गंगाराम के साथ अनंत

गौर से देखिए उस जगह को ! यही वो स्थान है जहाँ नदी के उपर चट्टान के किनारे-किनारे लैंटर डालकर फुट भर चौडा रास्ता बना रखा है जिस पर एक बार में एक ही आदमी आ - जा सकता है।

महंत बलराम गिरी जी रामपुर बुशहर वाले के टेंट मे अनंत बाबा जी के साथ। यहाँ हमने हलवा खाया और ग्लूकोज का पानी पिया था।

और अब कुछ जानकारी - बरहटी नाला, खुम्बा ड्वार, थाटी बील और थाचडू के बारे में। श्रीखंड विकास समिति वालों ने कई स्थानों पर  ऐसे सूचनार्थ बोर्ड लगा रखे हैं।

यहीं पर मिला था वो सिम - हर हर महादेव !



अगली सुबह थाचडू मे बादलों का आक्रमण !

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