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26 जुलाई 2016, दिन मंगलवार।
हमारी श्रीखंड महा-यात्रा जारी थी और कल हम लोग अपने पहले पडाव यानी थांचडू पहुंच गये थे। हमें थाचडू में ही पता चल गया था कि अब पार्वती बाग में यात्रियोंं को नही रुकने दिया जाता। वहाँ सिर्फ पुलिस, प्रशासन वाले और रेसक्यू वाले ही होते हैं। अतः आज हम लोग भीमद्वारी में रुकेंगे जो यहाँ से 10-12 किलोमीटर दूर है। सुबह पांच बजे तक निकल लेने का प्लान था। मगर सुबह सोकर उठे तो साढे - पांच बज रहे थे। जब तक हम जरूरी नित्य - कर्म से फारिग हुए तब तक गंगाराम चाय बनवा चुका था। चाय पीकर लगभग साढे छह बजे हम यहाँ से चल दिये। बडा अजीब सा मौसम था इस समय यहाँ, जैसा मैदानी इलाकों में सर्दियों के दिनों में होता है। धुंध सी छायी थी सारे वातावरण में - कोहरा और बादल। मगर ऐसे मौसम में चलने का मजा भी पूरा आ रहा था। चढाई अभी भी कल की तरह ही बरकरार थी - अनवरत, अडिग और अनंत ! लेकिन अब जंगल नही था। थी तो बस हरी-हरी घास और रंग बिरंगे फूल ! हम लोग ट्री-लाइन से उपर निकल चुके थे।
लगभग साढे आठ बजे हम लोग कालीटॉप पहुंचे। यहाँ आकर डंडाधार की चढाई खत्म हुई तो मन को थोडा सुकून मिला। कालीटॉप लगभग 3900 मीटर की उंचाई पर स्थित है। यहाँ से बहुत दूर स्थित श्रीखंड महादेव के प्रथम दर्शन हुए - बम शंकर ! कालीटॉप पर ही कालीमाता का एक छोटा सा मंदिर भी है। एक टेंट में चाय - मैगी का आनंद लिया गया। बहुत हल्की सी धूप निकली हुई थी और यहाँ पर कुछ लोग "एक्सरसाइज" भी कर रहे थे।
कालीटॉप पर करीब बीस मिनट का ब्रेक लेकर हम लोग आगे बढे। अब यहाँ से उतराई शुरू होती है और उतराई भी भयानक वाली ! कई जगह तो बिल्कुल खडे-खडे ही उतरना पडता है। हर कोई यही सोचता है कि पहाड पर चढने के मुकाबले उतरना ज्यादा आसान है। मगर यहाँ आकर पता चलता है कि भाई ऐसा नही है। पहाड पर उतरना भी उतना ही मुश्किल है जितना कि पहाड चढना। एक तो इतनी भयानक उतराई और उसपे बारिश का महीना ! जगह - जगह पत्थरों पर फिसलन हो जाती है जिससे फिसलने का खतरा बना रहता है। इसी उतराई के निम्नतम बिंदू पर है भीमतलाई। कोई साढे दस बजे हम लोग भीमतलाई पहुंचे। यहाँ कुछ टेंट लगे हुए थे। यहाँ पानी के छोटे -2 सोते हैं। एक जगह प्राकृतिक झरने में नहाने का भी इंतजाम है। पूरी यात्रा का सबसे सुंदरतम इलाका भी यही है। कालीघाटी से भीमद्वार तक ! पूरे इलाके में कुदरती खूबसूरती जबरदस्त रूप से बिखरी पडी है। एक तरह से कालीघाटी से भीमद्वार तक का इलाका एक "फूलों की घाटी" है। तरह - तरह के फूल और हरी - हरी घास मन को खूब भाती है। इस पूरे इलाके में कई तरह की दुर्लभ जडी - बूटियांं भी मिलती हैं जिनमेंं से "गुग्गल" प्रमुख है जिसका उपयोग धूपबत्ती-अगरबत्ती में महक बनाने मेंं किया जाता है। जांव और उसके आस - पास के गांव वाले यात्रा खत्म होने पर यहाँ से गुग्गल एकत्र करके उसे व्यापारियों को बेचकर अपनी कुछ दिन की आजीविका चलाते हैं।
पूरी श्रीखंड यात्रा को प्राकृतिक रूप से भी तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला भाग - जंगल वाला रास्ता जो जांव से थांचडू तक है, दूसरा - घास और फूलों से होकर जाने वाला रास्ता जो कालीघाटी से पार्वती बाग तक है और तीसरा भाग - पत्थर और बर्फ से होकर जाने वाला रास्ता जो पार्वती बाग से श्रीखंड तक है। आज हम यात्रा के इसी दूसरे भाग में थे।
भीमतलई में अनंत और गंगाराम ने परांठे खाये जबकि मैंने बस चाय पी। ठंडा मौसम हो और पहाड की चढाई हो तो दिन में जितनी बार भी चाय मिल जाये उतना ही कम है। भीमतलई में करीब आधा घंटा रुककर हम लोग आगे बढे। यहाँ से भीमद्वार का रास्ता हल्की चढाई और उतराई वाला है। मतलब कुल मिलाकर चढाई ही है। करीब डेढ - दो किलोमीटर दूर कुन्सा में सूप पिया और मोमोज खाये। कुंसा से आगे एक जगह ग्लेशियर पार करना पडा। ये एक जमे हुए झरने जैसा था, जिस पर चलने में हालत खराब हो रही थी। ग्लेशियर और बर्फ देखने में जितना सुंदर लगता है इस पर चलना उतना ही मुशकिल होता है। गंगाराम ने बताया कि "सर, इस बार कुछ कम बर्फ गिरी है इसलिए रास्ते ठीक हैं। पिछले साल तो बहुत अधिक बरफ गिरी थी और कुंसा से आगे काफी ज्यादा बर्फ थी - सारे झरने ग्लेशियर बने हुए थे।" अच्छा हुआ इस बार कम बर्फ है नही तो जाने हमारा क्या होता! धीरे-धीरे चलते हुए, जगह - जगह रुकते रुकाते, कुदरत के इन बेशकिमती नजारों का आनंद लेते हुए हम लोग करीब तीन बजे तक भीमद्वार पहुंच गये।
भीमद्वार पहुंचकर मुझे हल्का-सा बुखार हो गया था। अतः मैं दवाई लेकर अपने टेंट में सो गया। अनंत और गंगाराम प्रकृतिक सुंदरता का मजा लेने और मटरगस्ती करने निकल गये।
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सुबह के समय थाचडू से कालीघाटी की ओर |
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थके हुए चौधरी साब ! |
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अभी भी कालीघाटी तक चढाई बरकरार है - बस अब पेड खत्म हो गये हैं ! |
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धुंंआ, बादल और पहाड - क्या गजब कॉम्बिनेशन है ?! |
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दो जांबाज अपने श्रीखंड अभियान पर |
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कालीघाटी में कालीटॉप के पास एक्सरसाइज करते कुछ लोग |
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अनंत बस यही कह रहा है - आज में उपर, आसमांं नीचे |
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कालीटॉप - यहाँ से श्रीखंड बाबा के प्रथम दर्शन हुए थे। |
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कालीघाटी के बारे में जानकारी देता एक सूचना-पट्ट |
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जय मॉ काली - भक्त अनंत |
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धूप निकली तो कालीघाटी की खूबसूरती देखते ही बनती थी। |
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थाचडू से भीमद्वार तक घास और फूल ही हैं। यहाँ गद्दी लोग अपनी भेडों को लेकर आते हैं और आश्चर्य की बात तो ये है कि ऐसे - ऐसे स्थानों पर भेडों को चढा देते हैं जहाँ तक आदमी का पहुंचना मुश्किल होता है। |
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कालीघाटी से आगे की खतरनाक उतराई - है ना वाकई खतरनाक !! |
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भीमतलई - पीछे मुडकर देखने पर |
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कुंसा से आगे मिला ग्लेशियर |
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भीमद्वार पहुंच गये हम लोग |
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भीमद्वार में हमारा टेंट |
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अनंत बाबा और पीछे पार्वती झरना |
और अब कुछ प्रकृति के नजारे व फूल -
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कुदरत की खूबसूरती |
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कालीघाटी की खूबसूरती |
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एक अतिसुंदर, अनोखा फूल |
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ऐसे फूल आपको सिर्फ हिमालय में ही मिल सकते हैं। |
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पीले फूल |
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कुंसा के पास की खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद करता अनंत |
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मेरे हिसाब से हमारी श्रीखण्ड यात्रा के दौरान लिया गया बेस्ट फोटो - आपका क्या कहना है? |
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कुछ और बडे नीले फूल |
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फूलों की घाटी |
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नीलें फूलों की वादी |
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और अब गुलाबी मगर गुलाब नहीं |
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भीमद्वार से पहले एक झरना - ऐसे यहाँ अनेकों झरने हैं। |
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ये है गुग्गल जिसका प्रयोग धूपबत्ती और अगरबत्ती में होता है। |
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भीमद्वार की खूबसूरत वादी |
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भीमद्वार से दिखता पार्वती झरना और उसके आस-पास की खूबसूरती !
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आपने इसे पढा, आपका बहुत - बहुत धन्यवाद। कृप्या अब इसे शेयर करें।
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bhai bht sai hai
जवाब देंहटाएंNice blog and beautiful pictures
जवाब देंहटाएंSahi hai
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई लोग!!
जवाब देंहटाएंRefreshing Mohit bhai!!!👍👍
जवाब देंहटाएंRefreshing Mohit bhai!!!👍👍
जवाब देंहटाएंWOW MOHIT JI
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सहरावत जी।
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