20 नवम्बर 2016, दिन - रविवार
अभी - 2 हरिद्वार भ्रमण करके लौटा हूँ। थोड़ा अच्छा सा फील हो रहा है। बहुत दिन हो गये थे घर से निकले हुए। पहले प्लान किया था कि दशहरे के टाइम पर डोडीताल जाऊँगा, वो फेल हुआ। फिर प्लान किया कि दिवाली के बाद घर से आकर 13-14 नवम्बर के आस-पास मध्यमहेश्वर जाऊँगा। मगर पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते वहां भी नहीं जा पाया। उपर से मेरे पास छुट्टियाँ भी नही बची हैं, नही तो आज भी मध्यमहेश्वर निकला जा सकता था। मदे बाबा के कपाट अभी 22 को बंद होंगे। इस साल तो अब बस मध्यमहेश्वर रह गया, लेकिन फिर कभी जरूर जाऊँगा। खैर, अब बात करते हैं आज की ! तो जी हुआ यूँ कि मै अपने रूम पर पडा था और बोर हो रहा था। सुबह तक कही जाने का भी कोई प्लान नही था। बस अचानक अनंत की याद आयी और उसे फोन मिला दिया।
" अनंत यार कहीं घूमने चलते हैं"
"कहाँ चलना है सर?"
मेरे दिमाग में एकदम से आया, "बिल्केश्वर महादेव होते हुए विंध्यवासिनी मंदिर चलते हैं।"
"ठीक है सर मैं साढे बारह बजे तक आपके रूम पर आता हूँ।" अनंत ने कहा
विंध्यवासिनी मंदिर हम लोग पिछले साल भी इन्ही दिनों में गये थे। ये मन्दिर हरिद्वार से करीब 15-20 किलोमीटर दूर राजाजी राष्ट्रीय पार्क के चीला रेंज के जंगलों में एक छोटी सी पहाडी पर स्थित है। छोटा सा मंदिर है, मगर ये जगह बहुत ही सुंदर और एकदम शांत है। विंध्यवासिनी मंदिर, पौडी - गढवाल जिले के यमकेश्वर ब्लॉक के अंतर्गत आता है। अर्थात एक तरह से आज हम लोग पौडी - गढवाल जिले में भी घूम आये।
अनंत पौने एक बजे मेरे पास आया और हम लोग अपने आज के हरिद्वार भ्रमण पर निकल लिए। रानीपुर मोड से पहले ही जो रास्ता हरिद्वार बाईपास की तरफ जाता है, हम उसी पर हो लिए। हरिद्वार बाईपास रानीपुर मोड के पास से पहाडी के सहारे रेल्वे लाइन के बांयी ओर से होकर मंसा देवी के पैदल रास्ते के पास से होता हुआ भूपतवाला तक जाता है। इसे खड्खडी बाईपास के नाम से भी जाना जाता है। इसी बाईपास पर 4-5 किलोमीटर चलने के बाद बांयी ओर ही पहाडी के नीचे बिल्केश्वर महादेव मंदिर है। जैसे कि भारत के हर मंदिर से कोई ना कोई मान्यता जुडी होती है, वैसे ही इस मंदिर से भी जुडी है। कहते हैं कि यहाँ माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए तप किया था। वैसे मुझे तो ऐसा कुछ नही लगा यहाँ!
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रानीपुर मोड से मन्सा देवी मंदिर की ओर जाता हरिद्वार बाईपास |
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भक्त अनंत !! |
भोलेबाबा के दर्शन करके हम लोग सीधे भीमगोडा बैराज पहुँचे। यहीं से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खुशहाली अर्थात गंग-नहर निकलती है। हरिद्वार की जगत-प्रसिद्ध हर की पौडी भी इसी गंग नहर पर बनी है। भीमगोडा बैराज से निकलकर गंगनहर मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, बुलंद्शहर होते हुए अलीगढ़ में स्थित नानु तक जाती है जहां से यह कानपुर और इटावा में शाखाओं में बंट जाती है। भीमगोडा बैराज से आगे जाने वाली गंगा की धारा को हरिद्वार में नीलधारा के नाम से जाना जाता है। इस बैराज का नियंत्रण अभी भी उत्तर प्रदेश सिचाई विभाग के पास है। कुछ देर यहाँ रुककर हम लोग चीला के लिए निकल गये।
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भीमगोडा बैराज से निकलती पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खुशहाली - गंग नहर |
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बैराज के पास - पीछे नीलधारा अर्थात गंगाजी और उत्तर प्रदेश सिचाई विभाग का गेस्ट हाउस |
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भीमगोडा बैराज की टेक्निकल जानकारी |
बैराज से निकलते ही जंगल शुरु हो गया और हम राजाजी नेशनल पार्क के चीला रेंज में घुस गये। राजाजी को सन् 1983 में नेशनल पार्क घोषित किया गया था, एवम् इसका कुल इलाका 120 वर्ग किलोमीटर के आस-पास है। यह जानकारी मुझे एक जगह सूचना बोर्ड पर लिखी मिली। आजकल पार्क पर्यटकों के लिये खुला हुआ है तो यहाँ काफी चहल-पहल थी। चीला में ही गढ़वाल मंडल विकास निगम वालो का एक पर्यटक आवासगृह भी बना हुआ है। यहाँ हमें ना ही रुकना था और न ही हम रुके। चीला में उत्तराखंड जल विद्युत निगम का 144 मेगावाट का एक पावर हाउस है। ये पावर हाउस ऋषिकेश के वीरभद्र बैराज से आने वाली एक नहर पर बना है। हम रुके कुछ देर के लिए इसी चीला जल विद्युत गृह के पास। कुछ फोटो खींचे और आगे बढ गये। यही रोड आगे ऋषीकेश तक जाता है, अच्छा बना हुआ रोड है और इस पर ट्रेफिक भी नही होता। पावर हाउस से आगे रास्ता नहर के साथ-2 ही है।
करीब 5-6 किलोमीटर चलने पर नहर पार करके गंगा-भोगपुर गांव आता है। यहीं से एक कच्चा और पथरीला रास्ता जंगल के अंदर से होता हुआ विंध्यवासिनी मंदिर तक जाता है। पूरे रास्ते पर जंगली जानवरों के मिलने का खतरा बना रहता है। यहाँ रेत और छोटी बजरी का अवैध खनन भी बहुत होता है। आगे जाने पर एक दो छोटी -2 बरसाती नदियां मिली। इनमे पानी कम था, मगर इसकी स्पीड काफी थी। एक दो जगह मुझे बाइक से उतरना भी पडा। किसी तरह से रेत, बजरी के रास्तों और बरसाती नदियों से निकलते हुए हम लोग 2 बजे तक विंध्यवासिनी मंदिर पहुँचे। दर्शन किए, प्रसाद खाया और नीचे मंदिर के पास ही बनी एक दुकान पर चाय की चुश्कियां लेने पहुँच गये। मैंने अंदाज लगाया कि यहाँ से झिलमल गुफा और नीलकण्ठ महादेव ज्यादा दूर नही होने चाहिये और वापस घर आकर गूगल मैप पर चेक किया तो झिलमिल गुफा तो पास में ही निकली। मंदिर के नीचे बनी दुकान पर चाय पीकर और कुछ देर रुककर हम लोग वापस लौट आये। अबकि बार जब भी विंध्यवासिनी मंदिर जाऊँगा तो झिलमिल गुफा जरूर देखूँगा। कहते हैं वहां कोई पहुँचे हुए बाबा रहते हैं।
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चीला पावर हाउस |
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सामने के किनारे पर चीला जल विद्युत गृह लिखा हुआ है। |
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पौडी गढवाल जिला |
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गंगाभोगपुर खनन क्षेत्र |
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एक जलधारा को पार करता हुआ अनंत - यहाँ कोई रास्ता भी नही बना है। |
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विंध्यवासिनी मंदिर के पास जूते निकालकर पानी में चलने का आनंद उठाता अनंत |
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मंदिर की ओर जाती सीढियां |
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विंध्यवासिनी मंदिर के पास |
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उदासीन अखाडा - कुश्ती वाला अखाडा नही बाबा लोगों वाला |
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वो उधर, उस पहाडी के पीछे नीलकण्ठ महादेव होना चाहिये, यही कहा था मैंने अनंत को। और वाकई नीलकण्ठ उधर ही है |
विंध्यवासिनी मंदिर से वापस आते समय हम लोग कुछ देर चीला में रुके थे। यहाँ राजाजी नेशनल पार्क का एक गेट बना हुआ है। और यहीं जंगल सफारी करायी जाती है। नीचे पेश हैं यही गेट और इसके आस-पास के कुछ फोटोज:-
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राजाजी नेशनल पार्क में जंगल सफारी करा पर्यटकों को लेकर लौटती एक जीप |
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25 अप्रैल 2015 को राजाजी नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व घोषित कर दिया गया है। |
आपने इसे पढा, आपका बहुत - बहुत धन्यवाद। कृप्या अब इसे शेयर करें।
Bhai mast ghum rahe ho, badhia bhai, chilla ke andar bhi jaana tha wahan bhi mast hai...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिनेश भाई। हाँ यार जाना तो था पर टाइम नही बचा था। फिर कभी जाऊँगा जरूर।
हटाएंBahut badhiya.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंYatra gyanvardhak hai. Mandir ke bare main adhik likha ja sakta tha.
जवाब देंहटाएंArea kafi ramnik hai
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