शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2017

डोडीताल यात्रा: बेवरा चट्टी से डोडीताल


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 घर पर अपनी सलामती की सूचना देकर मैं और बलबीर नीचे बेवरा में चाचा के ढाबे पर लौट आये। दिन छिपने लगा था और चाचा ने डिनर की तैयारी शुरू कर दी थी। चूल्हे पर दाल पक रही थी, आलू राई की सब्जी पहले ही बन चुकी थी। मनीराम भी आ गया। मनीराम यानी मनी मूल रूप से नेपाली है और उपर डोडीताल में फ़ॉरेस्ट रेस्ट हाउस में चौकीदार है। साथ ही वह वहाँ स्थित गणेश मंदिर की धर्मशाला की देखरेख भी करता है। आजकल ऑफ सीजन होने की वजह से अपने बेवरा स्थित घर में रहने आया हुआ है। मनीराम ने अपनी पूरी जिंदगी डोडीताल और यहाँ आने वालों की सेवा में लगा रखी है और पिछले 24 सालों से यहीं रह रहा है। बलबीर ने बताया कि डोडीताल से आगे दारवा टॉप से एक रास्ता हनुमान चट्टी तक जाता है जिसे एक दिन में कवर किया जा सकता है। इतना सुनते ही मेरे दिमाग में विचार आया कि क्यूं न डोडीताल से वापस इसी रास्ते से आने के बजाय सीधे हनुमान चट्टी निकला जाये। गाइड को भी कोई अतिरिक्त पैसा नही देना पडेगा। और चूंकि ये पूरा रास्ता दारवा पास को पार करके जाता है तो सामने वाले नजारे भी जबरदस्त होंगे। बलबीर ने बताया कि पूरे रास्ते से हिमालय का जबरदस्त व्यू दिखता है - बंदरपूंछ, स्वर्गारोहिणी से लेकर चौखम्बा तक सारी बर्फिली चौटियां सामने ही दिखती हैं। मैंने तुरंत इस ट्रैक के लिए अपना मन बना लिया। मगर जल्द ही मनी ने मेरे इस सपने को तोड दिया। उसने बताया कि डोडीताल से हनुमान चट्टी का ट्रैक करीब 32-33 किमी का है जिसको एक दिन में किसी भी हालत में पूरा नही किया जा सकता। डोडीताल से दारवा तक पांच किमी की खडी चढाई है जिसमें कम से कम तीन घंटे लग जाते हैं जबकि आगे भी रास्ता चढाई - उतराई वाला ही है। रास्ते में कहीं कोई रूकने का ठिकाना भी नही है। और बात भी सही थी। ट्रैक चाहे कैसा भी हो एक दिन में 33 किलोमीटर पैदल चलना मेरे बसकी बात नही है। उपर से सर्दियों का मौसम, दिन भी सबसे छोटे होते हैं इस मौसम में। आइडिया ड्रॉप कर दिया गया। मन को समझा लिया कि यार फिर कभी गर्मियों में आउंगा तो इस चक्कर को पूरा करके हनुमान चट्टी तक जाउंगा और वहां से फिर यमनोत्री। दाल पकती रही और हम लोगों की बातों का सिलसिला चलता रहा।

दिन छिपते ही घुप्प अंधेरे ने सारे वातावरण को अपने आगोश में ले लिया। एक मात्र रोशनी थी तो बस चाचा के ढाबे पर - पैट्रोमैक्स और चूल्हे में जलती आग की। चूल्हे के चारों तरफ बैठकर हम लोगों ने खाना खाया और सोने के लिये अपने-2 बिस्तरों में जा घुसे। चाचा ने यहाँ 2-3 पक्के कमरे बना रखे हैं, इनमें से दो कमरों में हमारे बिस्तर लगे थे। एक में मेरा बिस्तर था जबकि दूसरे में चाचा और बलबीर का। सर्दियों का मौसम था और यहाँ ठंड बहुत थी रजाई में घुसते ही कब नींद आ गई पता ही नही चला। मगर रात में एक अजीब घटना घटी। करीब तीन बजे मेरे कमरे के दरवाजे पर किसी ने बडे जोर से दस्तक दी जिससे मेरी नींद खुल गयी। बाहर कोई जानवर आया था -हिरण हो शायद, जो सर्दी में कहीं आसरे की तलाश में था। उसने कम से कम 5-6 बार मेरे दरवाजे पर टक्कर मारी। दरवाजा भी ऐसा था कि इसमें सिर्फ एक ही चटकनी थी, वो भी उपर की तरफ। उस जानवर के बार-बार दरवाजा पीटने की वजह से कहीं वो टूट न जाये मुझे बस इसी बात का डर लग रहा था। उधर चाचा और बलबीर घोडे बेचकर सो रहे थे। खैर, थोडी देर तक टक्कर मारने पर जब वो जानवर सफल नही हो सका तो बेचारा वहां से चला गया और मेरी जान में जान आयी। इस घटना के बाद मुझे अब नींद नही आयी। मैं बस सुबह होने का इंतजार करने लगा। सुबह नाश्ते के दौरान चाचा और बलबीर को इस घटना के बारे में बताया तो पट्ठे बोले कि हमें तो पता नही चला। हम तो सो रहे थे। नाश्ते में चाय मैगी खाकर हम लोग डोडीताल के लिए निकल लिए। बेवडा से डोडीताल 14 किलोमीटर है, मतलब हमें पहुंचने में शाम ही हो जायेगी और रास्ते में कहीं कुछ खाने को भी नही मिलेगा। इसीलिए साथ में रास्ते के लिए तीन आलू के परांठे भी पैक करा लिए।

करीब पौने आठ बजे हम बेवरा से चले। शुरू में चार किलोमीटर यानी धारकोट तक चढाई भरा रास्ता है। पूरे पहाडों पर गजब का सूखा पडा था। सारी घास सूख चुकी थी। यहाँ तक की पेड तक सूख रहे थे। और ऐसा हो भी क्यों ना? दिसंबर का आंखिरी सप्ताह आने वाला था और अब तक यहाँ बारिश या बर्फबारी नही हुई थी। जबकि आमतौर पर यहाँ दिसम्बर के पहले सप्ताह में ही बर्फ पड जाया करती है। पूरे रास्ते पर धूल उड रही थी। थोडी दूर सामने तो किसी पहाडी पर धुंआ भी उठता दिखायी दिया। शायद वहां जंगल में आग लग गयी थी। इस सबको ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा कहें या कुदरत की निश्ठुरता, उत्तराखंड के जो पहाड इन दिनों बर्फ से लकदक रहते थे वहां गजब का सूखा पड रहा था - जंगल धधक रहे थे। दो दिन बाद यात्रा पूरी करके जब मैं घर पहुंचा तो मैंने 24 दिसम्बर के अखबार में पढा कि गंगोत्री से थोडा पहले स्थित हर्शिल के जंगलों में इन दिनों आग लगी हुई थी जिसे प्रशासन 2-3 दिन तक नही बुझा पाया था। वो तो भला हो उपर वाले का कि 25 दिसम्बर को उत्तर भारत का मौसम बिगडा और सारे पहाडी राज्यों समेत उत्तराखंड में भी बारिश और बर्फबारी हुई जिससे वो आग स्वत: ही बुझ गयी।

करीब दस बजे हम धारकोट पहुंचे। यहाँ यात्रियों के कुछ देर आराम करने के लिए एक शेड बना है। जिसकी वजह से इस जगह को लोग छतरी कहते हैं। यहाँ हम लोगो ने 10-15 मिनट आराम किया। यहाँ अस्सीगंगा काफी गहरी घाटी में बहती है जबकि अस्सी गंगा के उस पार सुप्रसिद्ध दयारा बुग्याल है। छतरी से डोडीताल 10 किमी है जबकि मांझी 5 किलोमीटर। मांझी एक कैम्पिंग स्थल है और यहाँ काफी झोंपडियां बनी हुई हैं। डोडीताल जाने वाले ज्यादातर ट्रैकर्स अपने टेंट वगरह लेकर आते हैं और मांझी में भी एक रात विश्राम करते हैं। मांझी से करीब 2 किलोमीटर पहले एक रास्ता सतगडी होते हुए दयारा बुग्याल भी जाता है। दयारा बुग्याल यहाँ से 15 किलोमीटर दूर है। हाँलाकि दयारा का मुख्य रास्ता उत्तरकाशी-गंगोत्री रोड पर स्थित भटवाडी के पास बरसू से है। मगर डोडीताल की तरफ से भी दयारा बुग्याल जाया जा सकता है।

साढे बारह बजे हम माझी पहुंचे। यहाँ से दूर एक पहाडी के पीछे बंदरपुंछ चोटी के हल्के से दर्शन हुए। लंच का समय हो रहा था और भूख भी लगने लगी थी। चाचा के ढाबे से लाये गये परांठे निपटाये गये। अचार के साथ आलू के परांठे खाकर आनंद आ गया। मांझी में हमने कुछ देर आराम किया और फिर अपनी आज की मंजिल की ओर बढ चले। मांझी से डोडीताल पांच किलोमीटर रह जाता है। रास्ता भी हल्की चढाई वाला ही है। अपने पास समय बहुत था तो हम आराम से फोटो खींचते हुए चलने लगे। मांझी से आगे दो झरनें मिले जो कि आंशिक रूप से जमें हुए थे। इसका मतलब था कि भले ही अभी यहाँ बारिश या बर्फबारी न हुई हो मगर ठंड अच्छी खासी पड रही थी, इसीलिए झरनों में बहता पानी जम गया था। मांझी से करीब साढे तीन - चार किलोमीटर चलने के बाद एक जगह आती है भैरों मंदिर, यह पूरे डोडीताल ट्रैक का उच्चतम स्थान है। यहाँ भैरों बाबा का एक छोटा सा मंदिर बना है। भैरव मंदिर के बाद पूरा रास्ता हल्की उतराई वाला है। करीब एक किलोमीटर की उतराई के बाद रास्ता समतल हो जाता है। थोडा सा और चलने पर जंगल अचानक से खत्म हो जाता है, और हम पहुंच जाते हैं डोडीताल - साफ पानी की एक उच्च हिमालयी झील और भगवान गणेश का स्थान।

करीब तीन बजे हम लोग डोडीताल पहुंचे। यहाँ एक फॉरेस्ट रेस्ट हाउस है जिसमें ठहरनें के लिए बुकिंग डी0 एफ़0 ओ0 ऑफिस उत्तरकाशी से होती है। यहाँ भगवान गणेश का एक मंदिर भी है, पास ही इस मंदिर की धर्मशाला है। साथ ही एक - दो ढाबे बने हुए हैं जो अगोडा वालों के हैं। इन्ही ढाबे में से एक में आज हम लोग रुकेंगे। अभी तीन ही बजे थे, दिन काफी था। थोडी देर आराम करके और चाय पीकर हम लोग ताल पर घूमने निकल लिए। सबसे पहले गणेश जी को नमन किया। मंदिर हाँलाकि बंद था। यहाँ भी उत्तराखंड के ज्यादातर मंदिरों की तरह ही कपाट सिस्टम है। डोडीताल स्थित गणेश मंदिर के कपाट भी उसी दिन बंद होते हैं जिस दिन यमनोत्री जी के कपाट बंद होते हैं।

डोडीताल के चारों ओर एक पगडंडी बनी हुई है, जिससे झील की परिक्रमा की जा सकती है। हम लोग भी परिक्रमा के लिए निकल गये। इस दौरान हमें "गोल्डन स्प्राउट फिश" भी दिखाई दी जो कुछ ही उच्च हिमालयी झीलों में पायी जाती हैं। ताल की परिक्रमा करके और ढेर सारे फोटो खींचकर हम लोग ढाबे पर लौट आये। दिन छिपने लगा था और ठंड बढनी शुरू हो गयी थी। जल्दी ही हम लोग डिनर करके अपनी - अपनी रजाईयों में जा घुसे।

ये है धारकोट। इस यात्रीशेड की वजह से यहाँ के लोग इस स्थान को छतरी भी कहते हैं।

पहाड में सूखा!!!


अस्सीगंगा के दूसरी ओर वाली पहाडी का नजारा। सामने थोडा दांयी ओर जो थोडा समतल सा भाग दिख रहा है वो दयारा बुग्याल का सबसे उपरी भाग है।


इस  जगह को छोटी मांझी कहते हैं।
दयारा बुग्याल जाने वाले रास्ते के बारे में जानकारी देता वन विभाग का एक सूचना बोर्ड

दिसम्बर में वीरान पडी मांझी

मांझी  से बहुत दूर दिखती बर्फ से ढकी बंदरपूंछ चोटी की एक झलक

"मोहब्बते" फिल्म वाले पत्ते!!!

झरने का बहता पानी जम गया है - मतलब ठंड बहुत है।


भैरव मंदिर पर  लगा बोर्ड। मेरे हिसाब से यह बोर्ड भैरव मंदिर की समुद्र तल से ऊंचाई के बारे में गलत जानकारी दे रहा है। क्योंकि ये जगह पूरे डोडीताल ट्रैक की सबसे ऊंची जगह है। इसकी ऊंचाई 2900 मीटर दर्शायी गयी है जबकि डोडीताल 3050 मीटर पर है। मेरे अनुमान से ये जगह 3150 - 3200 मीटर के आस पास होनी चाहिये। किसी ने इस बोर्ड पर ही खुरचकर 3223 मीटर लिखा है जो कि शायद सही है।


जंगल खत्म, बस पहुंच गये डोडीताल।


डोडीताल झील और उससे निकलती अस्सीगंगा

सामने थोडा बांयी ओर दारवा टॉप है। डोडीताल से दारवा तक खडी चढाई साफ देखी जा सकती है।

डोडीताल स्थित गणेश मंदिर

उपर पहाड से झील तक आने वाली एक छोटी सी जलधारा
डोडीताल झील में पायी जाने वाली "गोल्डन स्प्राउट फिश" की एक झलक - काश ! मेरे पास और अच्छा कैमरा होता

डोडीताल से निकल आगे बढती अस्सीगंगा

फॉरेस्ट रेस्ट हाउस - डोडीताल


अ‍गले भाग में जारी.........

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