मंगलवार, 9 मई 2017

केदारनाथ यात्रा: हरिद्वार से गुप्तकाशी

30 अप्रैल 2017, रविवार
परसों यानी 28 अप्रैल को अक्षय त्रितीया थी। इसी दिन गंगोत्री और यमनोत्री मंदिर के कपाट खुल गये और उत्तराखंड की सुप्रसिद्ध चार - धाम यात्रा शुरू हो गई। यमनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा ही चार धाम यात्रा कही जाती है। अभी केदारनाथ और बद्रीनाथ के कपाट खुलने बाकी हैं जो क्रमश: तीन और छह मई को खुलेंगे। उसके बाद यात्रा पूरे जोर शोर से चलेगी। देश, दुनिया के कोने - कोने से लोग यात्रा के लिये उत्तराखंड पहुंचेंगे - कोई भक्ति के लिए तो कोई "एड्वेंचर" के लिए। इन चारों धामों में अकेला केदारनाथ धाम ही ऐसा है जिसके लिए काफी मेहनत-मशक्कत करनी पडती है। हालांकि यमनोत्री में भी पांच किलोमीटर पैदल चलना पडता है लेकिन केदारनाथ की 17 किलोमीटर की मेहनत के आगे वो कुछ भी नही है। बाकि गंगोत्री और बद्रीनाथ में तो पैदल चलने की जरूरत ही नही, यहाँ सीधे वाहन से पहुंच सकते हैं।

मैं भी काफी समय से केदारनाथ या गंगोत्री की यात्रा करना चाहता था। इसी बीच मेरे बचपन के दोस्त अमरदीप अका "मोनू" का फोन आया कि भाई गंगोत्री वगरह कहीं घूमने चलना है। साथ ही मेरे स्कूल के दोस्त विकास ने पूरी चार धाम यात्रा करने की इच्छा प्रकट की। इधर मैं तो बस तैयार सा बैठा था कहीं जाने के लिए। 1-2 अप्रैल में पराशर लेक जाने की प्लानिंग भी बस टिकट बुक कराने के बाबजूद फेल हो गयी थी। इस बार ऑफर किसी दूसरी तरफ से आया तो फट से हाँ हो गई। विकास को मनाया गया कि भाई देख, चार धाम यात्रा करने में कम से कम दस दिन का समय चाहिए और कम से कम मेरे पास तो इतना टाइम है नी। उपर से यात्रा स्कूटी से करनी है और चारों धाम कवर करने में कम से कम 1500-1600 किलोमीटर हो जायेगा तो इतनी स्कूटी चलाने का भी मिजान ना है मेरा! इस पर विकास ने बोला कि भाई और कहीं जाऊं या ना जाऊं मगर केदारनाथ जरूर जाउंगा  - आंखिर ज्योतिर्लिंग है केदारनाथ। साथ में हमारे ही मुहल्ले का एक और शख्श "पंडतजी" भी साथ चलने की बात करने लगा। 

अब कुछ परिचय मोनू, विकास और "पंडतजी" का हो जाये ताकि आप लोगो को भी इन तीनों के बारे में कुछ जानकारी मिल सके। तो जी, मोनू मेरे बचपन का मित्र है। उसका घर हमारे घर के बगल में ही है। बचपन में कबड्डी खेलना हो, चोर-पुलिस हो या फिर क्रिकेट सारे गेम्स हमने साथ-साथ ही खेले। हालांकि स्कूल में वो मेरे से एक क्लास पीछे था। मोनू का मेरठ-गाजियाबाद में वीडियो एडीटिंग का काम है। आज भी जब मैं गॉव जाता हूँ तो और किसी से मिलूं या न मिलूं मगर मोनू से जरूर मिलता हूँ। दूसरा बंदा - विकास। गॉव में स्कूल में हम साथ पढे हैं, बहुत अच्छे मित्र हैं। विकास का नानका हमारे गांव में है - जबकि उसका घर गाजियाबाद के लोहिया नगर में। विकास की लोहिया नगर में एक टायर की एजेंसी है और एक गिफ्ट शॉप। तीसरा शख्श - "पंडत जी"। असली नाम शायद मोहित ही है इसका भी लेकिन हम सभी लोग इसे "पंडत" ही बुलाते हैं। गॉव में फोटोग्राफी का काम है, बहुत अच्छा काम चल रहा है। उम्र में हम तीनों से 4-5 साल छोटा है तो ऐसी कुछ खास दोस्ती नहीं है। 

मोनू और विकास से फोन पर बात हुई। तय हुआ कि केदारनाथ, त्रियुगीनारायण, तुंगनाथ और बद्रीनाथ जायेंगे। 29 अप्रैल, शनिवार को हरिद्वार से निकलने का प्लान किया गया। उधर केदारनाथ का नाम सुनते ही "पंडतजी" के घर वाले घबराने लगे। उसके पापा ने उसको जाने से मना कर दिया और हम तीन लोगो के हिसाब से ही प्लानिंग करने लगे। 29 तारीख की सुबह विकास और मोनू गाजियाबाद से निकल लिए। करीब बारह बजे मैंने फोन किया तो पता चला पठ्ठे पिछले एक घंटे से खतौली में हैं, "पंडत" आ रहा है गांव से, उसका इंतजार कर रहे हैं! आंखिर किसी तरह घरवालो को मनाकर "पंडत" हमारे साथ चलने वाला है।

पांच बजे के करीब एक स्कूटी पर लधकर ये तीनों लोग मेरे यहाँ पहुंचे। आज ही हरिद्वार से निकलने का प्लान तो अब कैंसिल हो ही चुका था। शाम का टाइम काटने के लिए हम लोग केदारनाथ और बद्रीनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन करा आये। उत्तराखंड में अब चार धाम यात्रा के लिए बायोमेट्रिक रजिस्ट्रेशन होने लगे हैं। हरिद्वार में ये रजिस्ट्रेशन मुख्य बस अड्डे के पास होटल राही में होते हैं। डिनर निपटाकर कल सबेरे निकलने की प्लानिंग शुरू की। अब तक भी हमारा प्लान वो ही था जो उपर लिखा है। मगर "पंडतजी" ने सब गुड गोबर कर दिया। एक तो पट्ठा कोई भी गर्म कपडा नही लाया था और उपर से उसके पास सिर्फ 5 दिन थे। हर हाल में 5 मई को उसे गांव पहुंचना था। कोई बुकिंग थी उसकी। हमने उपर लिखी चारों जगह जाने की बात की तो पट्ठा बोला कि मेरे पास तो इतना समय नही है तुम तीनों निकल जाओ, मैं कल सबेरे की बस पकडकर गांव चला जाउंगा। जबकि केदारनाथ जाने का उसका इतना मन था कि घरवालों के लाख मना करने पर भी किसी तरह वो आ ही गया था। हाँलाकि मुझे थोडा सा गुस्सा भी आ गया ये सुनकर। मैंने कहा, "जब तेरे पास टाइम नही है और तुझे घर ही जाना है तो यहाँ तक क्या ऐसी-तैसी कराने आया है तू।" खैर, आंखिर हम सबने भी 5 तारीख तक उसके साथ ही वापिस आने की रजामंदी कर ली। साथ ही अपनी एक जैकेट मैंने "पंडतजी" को दे दी।

केदारनाथ के कपाट तीन मई को खुलेंगे। हमें एक दिन पहले अर्थात 2 तारीख को शाम तक केदारनाथ पहुंचना है। हमारे पास पूरे तीन दिन का समय है वहां पहुंचने के लिए। तीन मई को ही कपाट खुलने के समय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी भी केदारनाथ आने वाले हैं। अगले दिन 30 अप्रैल को हम लोग यानी मैं, मोनू, विकास और "पंडतजी" हरिद्वार से अपनी केदारनाथ यात्रा पर निकल लिए। दो स्कूटी थीं - विकास की और मेरी। करीब साढे छह बजे हम मेरे कवाटर से चले। हमेशा की तरह ऋषिकेश जाने के लिए चीला वाला रास्ता पकडा। सुबह के समय पूरा रोड खाली पडा था। रास्ते में कई जगह सडक पर हाथी का गोबर पडा मिला। आंखिर ये राजाजी राष्ट्रीय पार्क है और इस जगह पर हाथियों की भरमार है। घंटे भर में ऋषिकेश पहुंचे तो एक ढाबे पर नाश्ता करने के लिए रूक गये। आलू के परांठे और चाय का आदेश दे दिया गया।आज सुबह से ही बादल से हो रखे थे। हल्की - हल्की बूंदाबांदी होने लगी और हम लोग चाय परांठों पर टूट पडे। करीब सवा घंटे बाद बारिश रुकने पर हम लोग आगे बढे।

बयासी तक पहुंचे ही थे कि फिर से बूंदाबांदी शुरू हो गयी। मौसम ठंडा हो ही गया था, बारिश का फायदा उठाकर बयासी में भी एक चाय निपटा दी गई। करीब पंद्रह मिनट यहाँ रूककर आगे बढे। अब तक हम कुछ ज्यादा ही रुकते-रूकाते चल रहे थे इसलिये निर्णय किया कि अब सीधे श्रीनगर में ही रुकेंगे वो भी लंच के लिए। करीब साढे ग्यारह बजे देवप्रयाग पहुंचे, यहाँ बिना रुके ही निकल गये। श्रीनगर से करीब दस-बारह किलोमीटर पहले एक अच्छी सी लोकेशन दिखी तो कुछ देर रुककर फोटो खींचने का कार्य चला। एक बजे के करीब श्रीनगर पहुंचकर एक ढाबे के पास मैं और मोनू रुक गये। विकास और "पंडतजी" हमारे पीछे ही आ रहे थे मगर न जाने कब वो हमसे आगे निकले हमें पता ही नही चला। खामाखां मैं और मोनू श्रीनगर में 15-20 मिनट रुके रहे। फिर "पंडतजी" को फोन किया तो पता चला वो लोग तो श्रीनगर से 4-5 किलोमीटर आगे निकल चुके हैं। उनको वहीं रुकने को बोला और तेजी से हम लोग श्रीनगर से निकल लिए। धारी देवी मंदिर से थोडा पहले एक बार फिर बारिश आ गई और हमें एक दुकान में शरण लेनी पडी। भूख लग ही रही थी। मैगी और कोल्ड-ड्रिंक का लंच किया गया।

चार बजे के करीब अगस्तमुनि पहुंचे। अगस्तमुनि, रुद्रप्रयाग के बाद केदारनाथ वाले रास्ते पर करीब 15 किलोमीटर दूर एक कस्बा है। "पंडत" यहाँ अगस्तमुनि के आश्रम की खोज में था। मगर यहाँ सिर्फ अगस्तमुनि के नाम पर एक मंदिर है कोई आश्रम नही है। मंदिर जाना कैंसिल कर, अगस्तमुनि पार करके हम लोग उसी पैट्रोल पम्प के पास रुके जहाँ साल 2015 में अपनी देवरिया ताल - तुंगनाथ यात्रा के दौरान मैं, विनोद और विवेक रुके थे। यहाँ मंदाकिनी के किनारे पर जाकर कुछ फोटो खींचे और फिर एक-एक चाय पीकर गुप्तकाशी के लिए निकल लिए। आज हमारा प्लान गुप्तकाशी तक पहुंचने का ही था। क्योंकि हमारे पास कल का पूरा दिन पडा है गौरीकुंड पहुंचने के लिये। करीब छह बजे तक बडे आराम से हम गुप्तकाशी पहुंच गये। यहाँ आकर समझ आ गया कि शीघ्र ही केदारनाथ यात्रा शुरू होने वाली है। सारे होटल-धर्मशालायें सज रही हैं, पेंटिंग का काम चल रहा है। कई होटल में पता करने के बाद बडी मुश्किल से एक होटल में कमरा मिला। चार लोगों के लिए हजार रुपये में, गीजर सुविधा के साथ। अगले कुछ दिनों के बाद ही इस कमरे का रेट कम से कम 1200-1500 हो जायेगा। करीब एक घंटा आराम करके हम लोग डिनर के लिए निकले। यहाँ भी हमारे आने के बाद अच्छी बारिश हुई तो ठंड काफी लग रही थी। जल्दी-2 डिनर करके हम लोग अपनी-2 रजाइयों में जा घुसे।

हरिद्वार से यात्रा शुरू

जहाँ चार यार मिल जायें -- बांये से विकास, मैं, "पंडतजी" और मोनू 



फोटो आभार - मोनू
धारी देवी मंदिर से थोडा आगे अलकनंदा के बीच पर
मंदाकिनी के मुहाने पर मैं, विकास और "पंडत"



स्टाइल सा मारते हुए मोनू - इसे मैंने कई बार कहा कि भाई फोटो खिंचाते टाइम मुंह बंद रखा कर !!!

"पंडतजी"

 तीनों के तीनों अपने -अपने गेजेट्स में लगे हुए हैं!!!!

डॉन सा बना दिया मोनू ने मुझे इस फोटो में !!!!
अगले दिन सुबह गुप्तकाशी स्थित होटल की छत से लिया गया चौखंबा और उसके आसपास की चोटियों का नजारा
अगले भाग में जारी.........

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