शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

रुपकुंड ट्रैक: तीसरा दिन - बेदनी बुग्याल से भगुवाबासा

02 अक्टूबर, 2017
इस यात्रा वृतांत को शुरुआत से पढने के लिए यहाँ क्लिक करें। 
आज दो अक्टूबर है। पूरा देश गांधी जयंति मनाने में जुटा पडा है - हाँलांकि देश के दूसरे प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी की भी जयंती आज ही है। मैं अपने रुपकुंड मिशन पर हूँ और कल लोहाजंग से चलकर बेदनी बुग्याल तक पहुंच चुका हूँ। कल की यात्रा के दौरान मेरी कम्पनी के ही 3-4 लोग मिले थे जो बेदनी तक मेरे साथ आये हैं। आज मुझे अपने आगे की यात्रा करनी है यानी बेदनी से भगुवाबासा पहुंचना है जो कि लगभग 4200 मीटर की ऊंचाई पर है। जबकि मेरी कम्पनी वाले लोग आज आली बुग्याल देखकर वापस लौटेंगे। सुबह आराम से साढे छह: बजे के करीब सोकर उठा। फ्रेश होकर नाश्ता - पानी करके चलने की तैयारी करने में आठ, सवा आठ हो गये। लेकिन आज ऐसी कोई जल्दी भी नही थी निकलने की, क्योकि आज तो सिर्फ दस-क किलोमीटर ही चलना है। जिस ढाबे पर रात से हमारा खाना-पीना हो रहा था उसका मालिक भी एक ग्रुप को लेकर आज आगे के लिए निकलेगा और वो लोग आज पातर नाचनी में रुकेंगे। गजेंद्र उनके साथ निकलना चाह रहा था, वो तो भला उस ढाबे वाले का उसने कहा कि हम तो आराम से दस बजे के आसपास निकलेंगे। हमारे लिए इतना इंतजार करने का कोई मतलब नही था इसलिए हम ढाबे वाले को आगे मिलने की बात करके निकलने लगे तभी  नीचे से रवि लोग भी आ गये। और एक बार फिर कुछ देर के लिए ही सही हम सब भेल वाले साथ हो गये। कैम्प साइट से 150-200 मीटर दूर ही बेदनी कुंड है जहाँ तक हर वर्ष नंदादेवी की सालाना यात्रा आती है। यहाँ बेदनी कुंड के पास कुछ देर का फोटो सेशन चला। बेदनी कुंड के पानी में नंदाघुंटी और त्रिशुल दोनों चोटियों के प्रतिबिम्बों के कुछ फोटो भी लिए और यहीं से रवि लोगों को अलविदा कहा। आज वो लोग आली बुग्याल होते हुए वापस वाण जायेंगे जबकि मैं अपनी मंजिल रुपकुंड की ओर बढूंगा।

बेदनी कुंड से हम लोगों के रास्ते अलग - अलग हो गये।  बेदनी कुंड से थोडी सी चढाई चढकर हम रुपकुंड की ओर जाने वाली मेंन बटिया (पगडंडी) पर पहुंच गये। यहाँ से घोडा लौटनी तक करीब एक-डेढ किलोमीटर का हल्की - हल्की चढाई वाला रास्ता है। जब हम बेदनी से चले थे तो हमारे आगे हमसे करीब 20-25 मिनट पहले एक ग्रुप गया था। इस ग्रुप को हमनें घोडा लौटनी के आधे रास्ते में ही पकड लिया और घोडा लौटनी क्या बल्कि आगे पत्थर नाचनी और भगुवाबासा तक हम लोग साथ साथ ही गये। घोडा लौटनी पर भी एक ढाबा मिला। यहाँ 10-15 मिनट आराम किया और चाय पी। बाकी सब लोगों को यहीं छोडकर मैं आगे निकल गया। गजेंद्र को बोल दिया कि मैं आगे पत्थर नाचनी में मिलुंगा तो वो बोला कोई नी सर आप निकलो मैं आपको उससे पहले ही पकड लुंगा। घोडा लौटनी से पत्थर नाचनी तक का करीब डेढ किलोमीटर का रास्ता है। पूरा रास्ता हल्की हल्की ढलान वाला है। जहाँ बेदनी बुग्याल 3450 मीटर पर हैं वही पत्थर नाचनी करीब 3550 मीटर पर। पूरे रास्ते गजेंद्र मुझे पकड नही सका। रुपकुंड यात्रा में पत्थर नाचनी भी एक अच्छा खासा पडाव स्थल बन गया है। दीदना -आली बुग्याल के रास्ते आने वाले ज्यादातर ट्रैकर्स यहाँ रुकते हैं। लोकल लोग इस जगह हो पातर नचौणियां कहते हैं और ज्यादातर "पातर" कहके ही बुलाते हैं। बारह बजे मैं "पातर" पहुंचा। यहाँ 3-4 ढाबे हैं और 2 फाइबर हट। इनमें से एक फाइबर हट में 2-3 साल पहले आग लग गयी थी सो वह आज भी जली हालत में ही है। बताते हैं वन विभाग वालों ने कुछ लोकल पर केस भी कर रखा है इस बाबत। उनका मानना है कि उस आग लगने के लिए लोकल लोग जिम्मेदार थे। खैर जैसे भी आग लगी हो हुआ तो नुकसान ही है जो कि गलत है। यहाँ एक ढाबे पर चाय पी और खाने के लिए मैगी का ऑर्डर दे दिया। तब तक गजेंद्र और वो दूसरे ग्रुप वाले भी आ गये। गजेंद्र आते ही बोला सर बडी तेज आये हो आप। मैंने कहा भाई बस ढलान पे स्पीड थोडी बढ ही जाती है खुद बखुद।

पत्थर नाचनी में हम करीब एक - डेढ घन्टा रुके। मैगी खायी, आराम किया और कुछ फोटो खींचे। हमारे साथ जो ग्रुप चल रहा था उसमें करीब 20-25 लोग थे जिनकी लीडर एक लडकी थी। एक और गाइड और एक पोर्टर भी था उन लोगों के साथ। उसी ग्रुप में से एक बंदे की तबीयत थोडी ज्यादा खराब हो गयी। अल्टीट्यूड सिकनेस हो रही थी उसे। अल्टीट्यूड सिकनेस जिसमें उल्टी, जी मिचलाना, सर दर्द जैसी समस्या ज्यादा होती है। खाने को मन बिल्कुल नही करता है। उस बंदे का बिल्कुल ऐसा ही हाल था तो उसके साथ वाले बंदो ने उनकी टीम लीडर को बुलाया। टीम लीडर ने उस लडके की पल्स और ऑक्सीजन लेवल एक क्लिप जैसे मीटर की हैल्प से चेक किया तो पाया कि ऑक्सीजन लेवल काफी लगभग 60% या शायद उससे भी नीचे हो गया था जिसकी वजह से उस लडके को ये दिक्कत हो रही थी। तो उन्होने उसे पानी पिलाया। AMS (अल्टीट्यूड सिकनेस) की दवाई दी और आज यहीं पत्थर नाचनी में ही उसके रुकने का इंतजाम कराया जिससे उसका शरीर यहाँ के वातावरण के अनुकूल हो सके। इसी दौरान मैंने भी मौका पाकर उनसे मेरा पल्स रेट और ऑक्सीजन लेवल चेक कराया जो बिल्कुल ठीक आया, हाँ ऑक्सीजन लेवल जरुर 90 के आसपास आया जिसके लिए उस लीडर ने पानी पीते रहने की सलाह दी। खैर, ये वाक्या मैं यहाँ सिर्फ इसलिये लिख रहा हूँ ताकि आप में से जो नही जानते हैं वो लोग जान सकें कि ऊंचाई पर जाने पर क्या दिक्कत हो सकती है। और जब भी कभी ऐसी दिक्कत महसूस हो तो वहीं रुक जायें और उपर न जायें नही तो दिक्कत और ज्यादा हो सकती है।

करीब डेढ बजे हम लोग पत्थर नाचनी से चले। पत्थर नाचनी से निकलते ही कालू विनायक या कलुवा विनायक की खडी चढाई शुरु होती है जो करीब डेढ-दो किलोमीटर की है। एक खडा पहाड चढकर उसके शीर्ष पर पहुंचना होता है जहाँ कलुवा विनायक नामक गणेश जी का एक छोटा सा मंदिर है। ये एक रिज है जो आगे रुपकुंड तक गयी है मगर कलुवा विनयाक के बाद रुपकुंड का रास्ता इस रिज पर नही चढता बल्कि इसके बगल से होता हुआ भगवाबासा पहुंच जाता है। भगुवाबासा के आगे रुपकुंड के आंखिरी के एक - डेढ किलोमीटर में फिर से इस रिज पर चढना होता है जहाँ करीब 4850 मीटर की उंचाई पर रुपकुंड है जबकि रिज के शीर्ष पर करीब 5020 मीटर की उंचाई पर जुनारगली पास है जहाँ से होकर होमकुंड जाते हैं।

साढे तीन बजे थे जब हम कलुवा विनायक पहुंचे। कलुवा विनायक लगभग 4350-4400 मीटर पर है। यहाँ हवा चल रही थी और आकाश में बादल हो रखे थे। यहाँ भी एक ढाबा था लेकिन आदत के विपरीत यहाँ मैंने चाय नही पी। कुछ देर रुककर, कलुवा बाबा का आशीर्वाद लेकर और फोटो खींचकर हम आगे बढ चले क्योंकि बादल घने से होते जा रहे थे और अगले आधे एक घंटे में बारिश हो सकती थी। हाँलाकि मेरे पास रेनकोट था मगर मैं फिर भी बारिश शुरु होने से पहले ही भगुवाबासा पहुंच जाना चाहता था। जबकि गजेंद्र के पास तो रेनकोट भी नही था।

कलुवा विनायक से भगुवाबासा करीब ढाई किलोमीटर है। पूरा रास्ता हल्की हल्की उतराई वाला ही है। समुद्रतल से 4000 मीटर से उपर होने के कारण इस इलाके में ब्रह्म कमल भी खूब पाये जाते हैं। चुंकि ब्रह्म कमल बरसात के दिनों में जुलाई-अगस्त माह में खिलता है। इसलिये हमें रास्ते में जितने बही ब्रह्म कमल मिले सब सूख  चुके थे। बारिश होने की आशंका थी सो हमने जल्दी-जल्दी चलते हुए ये पूरा रास्ता पार किया और करीब चार बजे भगुवाबासा पहुंच गये।

--भगुवाबासा समुद्रतल से लगभग 4250-4300 मीटर की उंचाई पर पत्थरों और चट्टानों के बीच एक छोटी सी कैम्पिंग साइट है। यहाँ भी इंडियाहाइक वालों के टेंट्स लगे थे। भगुवाबासा में भेडपालकों की कुछ झोंपडियां हैं। मगर वो ऐसे ही वीरान पडी हैं। तीन -चार ढाबे थे और एक ढाबे पर तो रुकने की  व्यवस्था भी थी मगर सिर्फ 1-2 आदमी के लिये। ऐसे ही एक ढाबे में जाते ही चाय मिली। चाय पीकर जैसे ही हमने टेंट लगाना शुरु किया तो ओले पडने शुरु हो गये। पूरा टेंट ओलावृष्टि के बीच ही लगाना पडा और हमारे टेंट लगाने के 5-10 मिनट के बाद ही ओलावृष्टि बंद हो गयी। थोडी देर बाद मौसम थोडा सा खुल गया तो मैं बाहर टहलने निकल गया। यहाँ खच्चरों के रुकने के लिए भी कुछ टीन शेड बने थे। रुपकुंड ट्रैक पर चलने वाले खच्चर भगुवाबासा तक ही आते हैं। यहाँ से रुपकुंड तक तीन किलोमीटर लोगों को पैदल चलकर ही जाना होता है। थोडा बहुत टहलकर, कुछ फोटो खींचकर मैं वापिस अपने टेंट में लौट आया। बगल वाले ढाबे पर आलू सोयाबीन की सब्जी बनी थी हाँलाकि इस 4300 मीटर की उंचाई पर खाना खाने का कुछ खास मन नही कर रहा था फिर भी दो रोटी तो निपटा ही दी गयी। अधिक उंचाई पर होने के कारण यहाँ ठंड बहुत थी और हमारे स्लीपिंग बैग तो बेदनी बुग्याल में ही 'बोल' गये थे। इसलिए फैंसला किया कि मैं अकेला दोनों स्लीपिंग बैग के साथ टेंट में सोउंगा और गजेंद्र ने अपने सोने का जुगाड कर लिया। कल सुबह जल्दी निकलने का प्लान करके मैं अपने टेंट में सोने चला गया और दोनो स्लीपिंग बैग ओढे तब  जाकर ठंड कम सी हुई।

सुबह के समय बेदनी बुग्याल का नजारा 

बेदनी बुग्याल में ढाबे से उठता धुआं। अपना खाना पीना इसी ढाबे पर हुआ था। 

बेदनी कुंड में नंदाघुंटी का प्रतिबिम्ब 
.

नंदाघुंटी और त्रिशुल बेदनी कुंड में 

थोडा उपर से बेदनी कुंड और उसके आसपास का नजारा 
बेदनी कुंड से उपर वाले पहाड के दूसरी तरफ का नजारा 

घोडा लौटनी की ओर - इसी जगह हमने इस बडे से ग्रुप को पकडा था जो हमसे आधा घंटे पहले चले थे। 

घोडा लौटनी से पत्थर नाचनी की ओर जाती पगडंडी 



पत्थर नाचनी - ये जो दो फाइबर हट दिख रहे हैं इन्ही में आग लगी थी। 



कालु विनायक पर चौधरी कलुवा जी को राम राम कर रहा है।

कलुवा विनायाक से भगुवाबासा के रास्ते में ब्रह्म कमल 

एक और सूखा ब्रह्म कमल

भगुवाबासा के पास चरवाहों की झोंपडिया 

भगुवाबासा में औले पड रहे  हैं। 

औलावृष्टि के बाद मौसम साफ हुआ और त्रिशुल ने अपने दर्शन दिये। 

भगुवाबासा 4298 मीटर - मेरे फोन के अल्टमीटर में भी इसको 4305मीटर दिखा रहा था। 

भगुवाबासा में लगे इंडियाहाइक वालों के टेंट

बादलों के बीच चमकती त्रिशुल !!

भगुवाबासा कम्पलीट कैम्प साइट 
अगले भाग में जारी.....

इस यात्रा वृतांत के किसी भी भाग को नीचे दिए गए लिंक्स पर क्लिक करके पढा जा सकता है।
१. रूपकुंड ट्रैक - हरिद्वार से लोहाजंग
२. रूपकुंड ट्रैक - लोहाजंग से बेदनी बुग्याल
३. रूपकुंड ट्रैक - बेदनी बुग्याल से भगुवाबासा
४. रूपकुंड ट्रैक - भगुआबासा से रुपकुंड लेक और वापस आली बुग्याल
५. रूपकुंड से वापस हरिद्वार - बद्रीनाथ होते हुए

2 टिप्‍पणियां:

  1. कठिन यात्रा आखिरी के दो किमी या वेदनी तक ही मानता हूँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. हाँ भाई जी। आखिरी के दो किमी थोडे ज्यादा कठिन हैं।

      हटाएं