मंगलवार, 6 सितंबर 2016

श्रीखंड महादेव यात्रा: भीमद्वार से पार्वती बाग और अनंत ने किये श्रीखंड बाबा के दर्शन

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27 जुलाई, दिन बुधवार।
आज हमारी श्रीखंड यात्रा का सबसे महत्तवपूर्ण और सबसे कठिन दिन था। आज हमें भीमद्वार से चलकर 10 किलोमीटर दूर 5250 मीटर की उंचाई पर स्थित श्रीखंड शिला के दर्शन करके शाम तक वापस भीमद्वार आना था। रात में डिनर के दौरान तय किया कि सुबह - सुबह 4 बजे तक निकल लेंगे ताकि शाम तक आराम से वापस आ सकें। मगर जब सोने लगे तो बारिश शुरू हो गयी। अब हम मन ही मन उपर वाले से दुआ करने लगे कि " हे प्रभु, प्लीज बारिश रुक जाय। ताकि हम कल अपनी यात्रा पूरी कर सकें"। मगर उसको तो अपने मन की करनी थी। रात भर बारिश होती रही। सुबह 5 बजे उठे तो भी बारिश हो रही थी। हम बारिश मे नही जाना चाहते थे। क्योंकि हमें अब तक बहुत से लोगों ने बोला था कि यात्रा का सबसे कठिन भाग तो पार्वती बाग से आगे नैन-सरोवर से शुरू होता है। उस पूरे रास्ते पर भयानक पत्थर हैं और उसके भी आगे बर्फ है। ऐसी बारिश में हम कैसे उन पत्थरों पर चलेंगे और बारिश के कारण तो बर्फ पर भी फिसलन हो गयी होगी। वैसे भी हमें अब तक बर्फ पर चलने का कोई अनुभव नहीं था। हालाँकि हमारे साथ गंगाराम था जो इस इलाके और इन कठिनाइयों से अच्छी तरह वाकिफ था। उपर से यात्रा खत्म हो रही थी और प्रशासन वाले टेंट वालो को अपने टेंट्स उखाडने के लिए कह रहे थे। ऐसे में हमें आगे जाना चहिये या बारिश रूकने का इंतजार करना चाहिये हम इसी दुविधा में थे। बारिश होती रही और हम टेंट में पडे रहे।

सात बज गये। बारिश कुछ थम सी गयी तो गंगाराम हमारे टेंट में आया और बोला -
"सर, क्या करना है? बारिश तो रुक रही है।"
"निकलेंगे थोडी देर में, तुम चाय और मैगी बनवा लो" अनंत ने कहा।
यह सुनकर गंगाराम चला गया। फ्रेश होकर हम लोग चलने की तैयारी करने लगे तो मैंने अनन्त से कहा कि भाई देख, मैं जहाँ तक जा पाउंगा, जाउंगा। तू उसके आगे अगर अकेला जाना चाहे तो चले जाना। वैसे तो अब मेरी तबियत ठीक-ठाक थी मगर अभी सौ फीसदी सही नही थी। दवाईयाँ, ग्लूकोस और कपूर एक बैग में रख लिया। कपूर ऊँचाई पर जाने पर साँस लेने में होने वाली प्रॉब्लम को काफी हद तक दूर करता है। आप लोग भी अगर कभी ऐसी ऊँचाई पर जायें तो कपूर जरूर साथ ले जायियेगा। चाय, मैगी खाकर करीब पौने आठ बजे हम लोगो ने भीमद्वार से प्रस्थान किया। अभी भी हल्की - हल्की बारिश हो रही थी। भीमद्वार से पार्वती बाग लगभग दो - ढाई किलोमीटर है। और इस पूरे रास्ते में हिमालय की दुर्लभतम जडी - बूटियां है। इन्ही जडी - बूटियों की वजह से इस रास्ते में ज्यादा देर रुक नहीं सकते, नही तो मदहोशी से लेकर मूर्छा तक छा जाने का खतरा रहता है। यहाँ एक विशेष प्रकार की जडी-बूटी की अधिकता है, जिसके प्रभाव से चक्कर आने लगते हैं। गंगाराम ने बताया कि सर ये बूटियां साफ मौसम में अधिक चढती हैं। आज आकाश में बादल हैं और बारिश भी हो रही है तो इनका इतना असर नही होगा फिर भी हमें कहीं भी बैठना नही है। थकान होने पर खडे-खडे ही दो मिनट तक सुस्ता लेना। हमने उसकी बात मान ली। करीब डेढ किलोमीटर चलने के बाद मुझे कुछ दिक्कत सी महसूस होने लगी। गंगाराम ने कहा, "सर रुकिये मत। ये बूटियों के असर की वजह से हो रहा है।" हम लोग चलते रहे और करीब नौ बजे पार्वती बाग पहुंच गये।

पार्वती बाग या पार्वती बगीचा ! जैसा कि नाम सुनकर लगता है कि कोई बाग-बगीचा टाइप होगा, पर ना तो यहाँ कोई बाग है और ना ही कोई बगीचा। यहाँ भी वही भीमद्वार की तरह हरी-हरी घास, कुछ दुर्लभ फूल और जडी - बूटियाँ। यहाँ हिमालय का दुर्लभतम पुष्प, ब्रह्म - कमल भी पाया जाता है। पार्वती बाग समुद्रतल से लगभग 4300 मीटर की ऊंचाई पर है। यहाँ कुछ टेंट लगे हुए थे, इनमें से एक टेंट में हम भी घुस लिए। यहाँ पहले से ही छह लोग और ठहरे हुए थे। बात हुई तो पता चला कि ये सभी लोग रोहतक, हरियाणा के रहने वाले हैं और सारे जाट हैं। ये लोग कल शाम से यहाँ ठहरे हुए थे, बारिश होने की वजह से आज आगे नही गये थे।

यहाँ हमने चाय पी। बारिश अभी भी चालू थी। अनंत ने कहा, "सर, आगे चलते हैं।" तो मैंने अब सिरे से खारिज कर दिया। "बारिश हो रही है, ऐसे में आगे जाना सही नही है" मैंने अपना तर्क दिया। "आज इन लोगो की तरह हम भी यहीं रुकते हैं, अगर कल मौसम सही रहा तो कल दर्शन के लिए जायेंगे नही तो बस यहीं से भोलेबाबा को राम-राम करके वापस चले जायेंगे।" गंगाराम की सलाह ली गयी तो उसने बोला कि सर अगर चलना है तो ज्यादा देर नही कर सकते जल्दी-जल्दी यहाँ से निकलना होगा। आगे जाने के लिये पुलिस वालों से भी परमिशन लेनी होगी। चूँकि मौसम सही नही है तो हो सकता है वो लोग आगे ना जाने दें। चाय पीकर अनंत और गंगाराम पुलिस वालों से बात करने चले गये। मैं इस टेंट में ही रहा। करीब 10 मिनट में वो लोग वापस आये।
मैंने पूछा "क्या रहा, क्या कह रहे हैं पुलिस वाले?"
"वो लोग बोल रहे हैं कि जाना चाहते हो तो अपने रिस्क पर जाओ। हम लोग कोई मदद नहीं कर पायेंगे अगर कुछ बात हुई तो" अनंत ने कहा।
"फिर तुम्हारा क्या प्लान है अब?"
"हम लोग तो आगे के लिए निकल रहे हैं। दो लोग और हैं मंडी से वो भी निकलेंगे हमारे साथ ही"
"मै नही जा रहा, मैं तो यहीं रहूँगा और अगर कल मौसम ठीक रहा तो कल जाऊँगा। तुम लोग जाना चाहते हो तो जाओ।" मैंने अपना अंतिम निर्णय सुनाया।

आंखिरकार जब वो लोग जाने लगे तो मैंने गंगाराम को बोला कि इस टेंट वाले को बोल दो, मैं आज यहीं रुकूँगा। मेरे खाने और सोने का इंतजाम कर दें। गंगाराम टेंट वाले को बोल आया। मुझे एक स्लीपिंग बैग और कम्बल मिल गया। हालाँकि यहाँ ठंड बहुत है मगर फिर भी स्लीपिंग बैग और कम्बल काफी है।

अनन्त और गंगाराम करीब 10 बजे चले गये और मैं पार्वती बाग में ही रुक गया। इस टेंट में हम सात "जाटों" के अलावा गाजियाबाद के एक अंकल जी भी थे। वे यहाँ पिछले चार दिनों से थे और तीन दिन तक कोशिश करने के बाद कल दर्शन करके आये थे। अंकल जी ने बताया कि वो कल सुबह चार बजे यहाँ से निकले थे और दोपहर के ढाई बजे श्रीखंड पहुँच पाये। वापसी में उनको रेस्क्यू टीम के तीन गोरखे अपनी कमर पर बांधकर दो घंटे में ही नीचे ले आये। अंकल जी ने मुझे काफी होंसला दिया कि बेटा यहाँ तक आ गये हो तो दर्शन करके जरूर जाना। दिन भर हम आठों की बातचीत होती रही। रोहतक वालों  के समूह में सभी लोग सरकारी नौकरी वाले थे। उन्होने बताया कि उन लोगो ने हमसे एक दिन पहले यानी 24 तारीख को सिंहगढ़ में रजिस्ट्रेशन कराया था। उधर अंकल जी का गाजियाबाद में अपना कुछ बिजनेस है। उन्हे हाई शुगर है मगर फिर भी वे अक्सर धार्मिक स्थलों की यात्रायें करते रहते हैं। उन्होने बारहों ज्योतिर्लिंग, चारों धाम, कैलाश मानसरोवर और अमरनाथ की यात्रा कर रखी है। अंकल जी ने ही हमें बताया कि कुल पाँच कैलाश हैं - कैलाश मानसरोवर, अमरनाथ, मणिमहेश, श्रीखंड कैलाश और किन्नर कैलाश। मगर मुझे लगता है शायद अमरनाथ को कैलाश नही माना जाता है बल्कि पांचवा कैलाश है "आदि-कैलाश" जो उत्तराखंड के कुमाऊँ में स्थित है। उनका बस किन्नर कैलाश बचा है जिसको वे यहाँ से जाकर पूरा करेंगे। वाह ! , क्या बात है अंकल जी ? गजब के घुमक्कड हैं आप भी। आपकी इस जीवटता को मेरा सादर प्रणाम।

लंच में हमने कढी-चावल खाये और बस आराम किया। शाम को करीब साढे पाँच, पौने छह बजे तक अनंत और गंगाराम वापस आ गये। जब उन्होने बताया कि वो दर्शन करके लौटे हैं तो एक बार को तो किसी को यकीन नही हुआ मगर जब अनंत ने मोबाइल में फोटो दिखाये तो हम सबने उन दोनो की हिम्मत की तारीफ की। इन दोनो ने एक और बहादुरी का कारनामा किया था और वो था ऐसी बारिश व इस इतने ठंडे मौसम में नैनसरोवर में नहाने का ! नैन-सरोवर जो आधा जमा हुआ था उसमे नहाना तो दूर मैं तो हाथ-पैर धुलने की हिम्मत तक नही रखता। अनन्त ने पूछा सर आपका क्या प्लान है? तो मैने कहा मैं कल इन लोगों के साथ दर्शन के लिए जाउंगा। मतलब मैं रात को यहीं रुकूंगा। अनन्त ने कहा, सर आगे बहुत ज्यादा कठिन है आप ना कर पाओगे। मैंने कहा कोई बात नही मैं कल एक बार ट्राई जरूर करूँगा। वहां तक जा पाया तो ठीक, नही तो रास्ते से वापस आ जाऊँगा। यहाँ चाय पीकर उन दोनो को नीचे - भीमद्वार जाना था क्योंकि यहाँ से श्रीखंड जाते समय पूरे रास्ते बारिश होती रही थी और उनके कपडे भीगे हुए थे। जब वो लोग भीमद्वार जाने लगे तो मैंने गंगाराम से पूछा कि तुम कैसे करोगे तो उसने कहा, सर मैं कल सुबह नीचे से आ जाऊँगा। आप लोग निकल जाना,  मैं नैन-सरोवर तक आप लोगों को पकड लूंगा। हम सबने कहा ठीक है। रोहतक वालों ने गंगाराम से कुछ बिस्किट के पैकट ले आने को भी कह दिया। अनंत और गंगाराम भीमद्वार के लिए निकल गये।

शाम को पार्वती बाग में डिनर में राजमा चावल खाये। कल सुबह जल्दी निकल लेने का प्लान बनाया गया। कुल मिलाकर हम ग्यारह जनें थे जिन्हे कल दर्शन करने जाना था। सात हम जाट, दो बंदे जम्मू के और दो गुजराती जो अलग - अलग टेंट में थे। असल में गुजराती तीन थे, उनमे से एक मोटे से साथी का शाम को फिसलकर गिरने से पैर मुड गया था तो वो आगे नही जायेगा। वो मोटा आदमी और उन गुजरातियों का पोर्टर सुबह नीचे भीमद्वार जायेंगे। सुबह को चार, साढे-चार बजे तक निकलना तय हुआ। अनंत ने तो दर्शन करके फतह हाँसिल कर ली थी! अब कल मेरी बारी थी। अनंत की उस बात ने कि "सर आप ना कर पाओगे", मुझे मन ही मन प्रेरित कर दिया था कि कुछ भी हो मुझे यात्रा पूरी करके दिखानी है। भोले बाबा की कृपा से अब मैं बिल्कुल ठीक था और मन महादेव से मिलने को आतुर था।  हर - हर महादेव !! 


पार्वती बाग की ओर चलने पर उपर से दिखता भीमद्वार - फोटो कल शाम को लिया गया है। 

पार्वती बाग के बारे में जानकारी देता एक सूचना पट्ट

पार्वती बाग में लगे टेंट और इस मौसम का आनंद उठाता एक पहाडी कुत्ता !

पार्वती बाग में दो जांबाज - चौधरी साब और अनंत

पार्वती बाग से आगे पत्थरों के बीच खिला ब्रह्म कमल

अर्ध-जमी नैनसरोवर झील में स्नान करता गंगाराम

अब स्नान की बारी अनंत की - भगवान जाने इन लोगो ने कैसे इस मौसम में इस आधी जमी झील में स्नान किया। मैंने तो हाथ - मुंह भी ना धोये थे यहाँ पर अगले दिन !!
नैनसरोवर पर स्थित मॉ पार्वती के छोटे से मंदिर में पूजा करता अनंत

अरे ! बस भाई पुजारी बाबा

साक्षात दर्शन ! - श्रीखंड बाबा के द्वार पर अनंत। पीछे 72 फीट उंचा प्राकृतिक शिवलिंग और त्रिशूल

शिवा और अनंत

यही है वो स्थान जिसके लिए श्रधालु जांव से 35 किलोमीटर चलकर नदी नाले पहाड सब पार करता हुआ आता है।

हर हर महादेव

वापसी के समय श्रीखन्ड से थोडा पहले वाला आंखिरी ग्लेशियर। अनंत बाबा इस पर ध्यान लगाये बैठे हैं!!

इस फोटो में बायीं ओर जरा ध्यान से देखिये। यहाँ बायीं तरफ बहुत तेज ढलान है। यदि एक बार इस बर्फ पर बायीं ओर को फिसले तो गिरेंगे नीचे और पहुंचेंगे सीधे उपर !!

भीमबही से थोडा आगे - पत्थर और बर्फ

भीमबही में अनंत - यहाँ बहुत बडे-बडे पत्थर किसी ने काट्कर सलीके से तह बनाकर रखे हुए हैं। कहा जाता है कि यह कारनामा महाबली भीम का है।

विजयी मुस्कान - मार लिया मैदान !!

फतह हाँसिल हुई - थम्ब्स अप!! 

खतरनाक उतराई

नैनसरोवर के उपर वाली पहाडी पर नीचे उतरता अनंत




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शनिवार, 3 सितंबर 2016

श्रीखंड महादेव यात्राः थाचडू से भीमद्वार

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26 जुलाई 2016, दिन मंगलवार।
हमारी श्रीखंड महा-यात्रा जारी थी और कल हम लोग अपने पहले पडाव यानी थांचडू पहुंच गये थे। हमें थाचडू में ही पता चल गया था कि अब पार्वती बाग में यात्रियोंं को नही रुकने दिया जाता। वहाँ सिर्फ पुलिस, प्रशासन वाले और रेसक्यू वाले ही होते हैं। अतः आज हम लोग भीमद्वारी में रुकेंगे जो यहाँ से 10-12 किलोमीटर दूर है। सुबह पांच बजे तक निकल लेने का प्लान था। मगर सुबह सोकर उठे तो साढे - पांच बज रहे थे। जब तक हम जरूरी नित्य - कर्म से फारिग हुए तब तक गंगाराम चाय बनवा चुका था। चाय पीकर लगभग साढे छह बजे हम यहाँ से चल दिये। बडा अजीब सा मौसम था इस समय यहाँ, जैसा मैदानी इलाकों में सर्दियों के दिनों में होता है। धुंध सी छायी थी सारे वातावरण में - कोहरा और बादल। मगर ऐसे मौसम में चलने का मजा भी पूरा आ रहा था। चढाई अभी भी कल की तरह ही बरकरार थी - अनवरत, अडिग और अनंत ! लेकिन अब जंगल नही था। थी तो बस हरी-हरी घास और रंग बिरंगे फूल ! हम लोग ट्री-लाइन से उपर निकल चुके थे।

लगभग साढे आठ बजे हम लोग कालीटॉप पहुंचे। यहाँ आकर डंडाधार की चढाई खत्म हुई तो मन को थोडा सुकून मिला। कालीटॉप लगभग 3900 मीटर की उंचाई पर स्थित है। यहाँ से बहुत दूर स्थित श्रीखंड महादेव के प्रथम दर्शन हुए - बम शंकर ! कालीटॉप पर ही कालीमाता का एक छोटा सा मंदिर भी है। एक टेंट में चाय - मैगी का आनंद लिया गया। बहुत हल्की सी धूप निकली हुई थी और यहाँ पर कुछ लोग "एक्सरसाइज" भी कर रहे थे।

कालीटॉप पर करीब बीस मिनट का ब्रेक लेकर हम लोग आगे बढे। अब यहाँ से उतराई शुरू होती है और उतराई भी भयानक वाली ! कई जगह तो बिल्कुल खडे-खडे ही उतरना पडता है। हर कोई यही सोचता है कि पहाड पर चढने के मुकाबले उतरना ज्यादा आसान है। मगर यहाँ आकर पता चलता है कि भाई ऐसा नही है। पहाड पर उतरना भी उतना ही मुश्किल है जितना कि पहाड चढना। एक तो इतनी भयानक उतराई और उसपे बारिश का महीना ! जगह - जगह पत्थरों पर फिसलन हो जाती है जिससे फिसलने का खतरा बना रहता है।  इसी उतराई के निम्नतम बिंदू पर है भीमतलाई। कोई साढे दस बजे हम लोग भीमतलाई पहुंचे। यहाँ कुछ टेंट लगे हुए थे।  यहाँ पानी के छोटे -2 सोते हैं। एक जगह प्राकृतिक झरने में नहाने का भी इंतजाम है। पूरी यात्रा का सबसे सुंदरतम इलाका भी यही है। कालीघाटी से भीमद्वार तक ! पूरे इलाके में कुदरती खूबसूरती जबरदस्त रूप से बिखरी पडी है। एक तरह से कालीघाटी से भीमद्वार तक का इलाका एक "फूलों की घाटी" है। तरह - तरह के फूल और हरी - हरी घास मन को खूब भाती है। इस पूरे इलाके में कई तरह की दुर्लभ जडी - बूटियांं भी मिलती हैं जिनमेंं से "गुग्गल" प्रमुख है जिसका उपयोग धूपबत्ती-अगरबत्ती में महक बनाने मेंं किया जाता है। जांव और उसके आस - पास के गांव वाले यात्रा खत्म होने पर यहाँ से गुग्गल एकत्र करके उसे व्यापारियों को बेचकर अपनी कुछ दिन की आजीविका चलाते हैं।

पूरी श्रीखंड यात्रा को प्राकृतिक रूप से भी तीन भागों में बांटा जा सकता है। पहला भाग - जंगल वाला रास्ता जो जांव से थांचडू तक है, दूसरा - घास और फूलों से होकर जाने वाला रास्ता जो कालीघाटी से पार्वती बाग तक है और तीसरा भाग - पत्थर और बर्फ से होकर जाने वाला रास्ता जो पार्वती बाग से श्रीखंड तक है। आज हम यात्रा के इसी दूसरे भाग में थे।

भीमतलई में अनंत और गंगाराम ने परांठे खाये जबकि मैंने बस चाय पी। ठंडा मौसम हो और पहाड की चढाई हो तो दिन में जितनी बार भी चाय मिल जाये उतना ही कम है। भीमतलई में करीब आधा घंटा रुककर हम लोग आगे बढे। यहाँ से भीमद्वार का रास्ता हल्की चढाई और उतराई वाला है। मतलब कुल मिलाकर चढाई ही है। करीब डेढ - दो किलोमीटर दूर कुन्सा में सूप पिया और मोमोज खाये। कुंसा से आगे एक जगह ग्लेशियर पार करना पडा। ये एक जमे हुए झरने जैसा था, जिस पर चलने में हालत खराब हो रही थी। ग्लेशियर और बर्फ देखने में जितना सुंदर लगता है इस पर चलना उतना ही मुशकिल होता है। गंगाराम ने बताया कि "सर, इस बार कुछ कम बर्फ गिरी है इसलिए रास्ते ठीक हैं। पिछले साल तो बहुत अधिक बरफ गिरी थी और कुंसा से आगे काफी ज्यादा बर्फ थी - सारे झरने ग्लेशियर बने हुए थे।" अच्छा हुआ इस बार कम बर्फ है नही तो जाने हमारा क्या होता! धीरे-धीरे चलते हुए, जगह - जगह रुकते रुकाते, कुदरत के इन बेशकिमती नजारों का आनंद लेते हुए हम लोग करीब तीन बजे तक भीमद्वार पहुंच गये।

भीमद्वार पहुंचकर मुझे हल्का-सा बुखार हो गया था। अतः मैं दवाई लेकर अपने टेंट में सो गया। अनंत और गंगाराम प्रकृतिक सुंदरता का मजा लेने और मटरगस्ती करने निकल गये।

सुबह के समय थाचडू से कालीघाटी की ओर 
थके हुए चौधरी साब ! 

अभी भी कालीघाटी तक चढाई बरकरार है - बस अब पेड खत्म हो गये हैं ! 
धुंंआ, बादल और पहाड - क्या गजब कॉम्बिनेशन है ?! 
दो जांबाज अपने श्रीखंड अभियान पर 
कालीघाटी में कालीटॉप के पास एक्सरसाइज करते कुछ लोग 
अनंत बस यही कह रहा है - आज में उपर, आसमांं नीचे 
कालीटॉप - यहाँ से श्रीखंड बाबा के प्रथम दर्शन हुए थे। 
कालीघाटी के बारे में जानकारी देता एक सूचना-पट्ट 
जय मॉ काली - भक्त अनंत 
धूप निकली तो कालीघाटी की खूबसूरती देखते ही बनती थी। 

थाचडू से भीमद्वार तक घास और फूल ही हैं। यहाँ गद्दी लोग अपनी भेडों को लेकर आते हैं और आश्चर्य की बात तो ये है कि ऐसे - ऐसे स्थानों पर भेडों को चढा देते हैं जहाँ तक आदमी का पहुंचना मुश्किल होता है। 
कालीघाटी से आगे की खतरनाक उतराई - है ना वाकई खतरनाक !! 
भीमतलई - पीछे मुडकर देखने पर
कुंसा से आगे मिला ग्लेशियर
भीमद्वार पहुंच गये हम लोग
भीमद्वार में हमारा टेंट


अनंत बाबा और पीछे पार्वती झरना

और अब कुछ प्रकृति के नजारे व फूल - 
कुदरत की खूबसूरती
कालीघाटी की खूबसूरती

एक अतिसुंदर, अनोखा फूल

ऐसे फूल आपको सिर्फ हिमालय में ही मिल सकते हैं।

पीले फूल

कुंसा के पास की खूबसूरती को अपने कैमरे में कैद करता अनंत
मेरे हिसाब से हमारी श्रीखण्ड यात्रा के दौरान लिया गया बेस्ट फोटो - आपका क्या कहना है?
कुछ और बडे नीले फूल
फूलों की घाटी
नीलें फूलों की वादी
और अब गुलाबी मगर गुलाब नहीं
भीमद्वार से पहले एक झरना - ऐसे यहाँ अनेकों झरने हैं।
ये है गुग्गल जिसका प्रयोग धूपबत्ती और अगरबत्ती में होता है।

भीमद्वार की खूबसूरत वादी
भीमद्वार से दिखता पार्वती झरना और उसके आस-पास की खूबसूरती !

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