13 मई 2018, रविवार
इस यात्रा वृतांत को शुरुआत से पढनें के लिए यहाँ क्लिक करें।
सुबह को आराम से छह बजे तक सोकर उठे। फ्रैश होकर और चाय पीकर यहाँ से
विदा ली। आज हमें दो सौ किमी से ज्यादा बाइक चलाकर द्वाराहट – बागेश्वर – कपकोट होते हुए खर्किया तक
जाना था और फिर वहां से आगे 5 किमी पैदल चलकर खाती गांव
पहुंचना था। गैरसैण से निकले तो सात बज गये थे मगर शहर में कोई खास चहल - पहल नही
थी। द्वाराहाट वाली रोड पकडी। कहने को तो ये राष्ट्रीय राजमार्ग है मगर मुश्किल से
सिंगल लेन रोड है। महलचौरी से आगे पांडवखाल की चढाई चढने के बाद थोडी उतराई है
जिसके बाद हम गढवाल से कुमाऊं की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। महलचौरी रामगंगा के
किनारे एक छोटा सा कस्बा है। रामगंगा नदी गढवाल और कुमाऊं की सीमा पर दूधातोली की
पहाडियों में ही कहीं से निकलती है और रामनगर के पास से बहते हुए कालागढ के निकट
उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है। आगे चलकर रामगंगा कन्नौज के समीप नौरंगपुर में
गंगा नदी में मिल जाती है। उत्तराखंड में चौखुटिया, भिकियासैण और उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद शहर रामगंगा नदी के किनारे
बसे हैं।
सवा आठ बजे के करीब चौखुटिया पहुंचे। अच्छा –खासा कस्बा है चौखुटिया और
अलमोडा जिले की एक तहसील भी है। चौखुटिया दो कुमाऊनी शब्दों “चौ” और “खुट” से मिलकर बना है जिसका कुमाऊनी में अर्थ है चार पैर वाला। चौखुटिया
से चारों दिशाओं को चार रास्ते जाते हैं जो क्रमशः रामनगर, गैरसैण, रानीखेत और तडागताल के लिए
जाते हैं। तडागताल 1.5 x 0.5 किमी एरिया की एक छोटी सी झील है, जो चौखुटिया से करीब 8 किमी दूर है। थोडा मालूम करने पर पता लगा आजकल
गर्मियों के दिनों में यह झील सूख जाती है और लोग इसमें धान आदि की खेती करते हैं। समय थोडा
कम था तो हम लोग इसे देखे बिना ही निकल गये। हाँ, हमें जोरों की भूख लगी थी तो चौखुटिया में थोडा रुककर केले जरूर खा
लिए थे। चौखुटिया से द्वाराहाट करीब 19 किमी है और रास्ते के तो कहने ही क्या? एकदम शानदार सडक बनी है, उस पर पूरे रास्ते चीड का
जंगल! “सोने पे सुहागा” जैसी बात है। द्वाराहाट कब
पहुंच गये पता ही नही चला। द्वाराहाट में उत्तराखंड का सरकारी इंजिनीयरिंग कॉलेज
है – कुमाऊं इंजिनीयरिंग कॉलेज
के नाम से। मगर हम कॉलेज की तरफ न जाकर पहले ही सोमेश्वर रोड की ओर मुड गये।सोमेश्वर रोड भी बिल्कुल ऐसी ही बनी है जैसी चौखुटिया-द्वाराहट रोड। हाँ रास्ता जरूर उतराई वाला है जो करीब
15 किमी दूर बिंता –पौखरी तक ऐसा ही है। बिंता को हम लोग “बिंटा” पढते आ रहे थे – वही “बिंटा” जो फावडे का उपरी भाग होता है। “बिंटा” के बाद से रास्ता एकदम मैदानी जैसा हो जाता है। पहाडी रास्ता और चीड
का जंगल खत्म हो जाता है। अब आगे सोमेश्वर तक खूब चौडी घाटी दिखती है। खेती भी इस
बेल्ट में जम के होती है। कई जगह हमनें देखा कि थ्रेशर वाले सडक के किनारे ही कई – कई लोगों के गेंहू निकाल
रहे हैं। चुंकि खेतों का आकार छोटा है इसलिए शायद एक आदमी के बुलाने पर तो
ट्रैक्टरवाला आता ही नही होगा। कई लोगों का एकसाथ अनाज निकलना हो तो तभी आता होगा।
खैर, पौने दस बजे के करीब सोमेश्वर पहुंचे। सोमेश्वर भी अल्मोडा जिले में ही आता है और चौखुटिया की तरह यह भी एक तहसील
है। हमनें सुबह से सिर्फ चाय और 3-3 केले ही खाये थे तो भूख जोरों से लगी थी। वैसे
भी हम सुबह से लगातार चल ही रहे थे तो कहीं स्कूटी कल की तरह गर्म ना हो जाये, इसे भी आराम दिलाना जरूरी
था। इसीलिए एक ठीक सा ढाबा/होटल देखकर हम उसमें घुस लिए। आलू परांठा और दही का
बढिया नाश्ता कर आगे बढ चले। सोमेश्वर से बागेश्वर जाने के दो रास्ते हैं। जो
मुख्य रास्ता है वो कुमाऊं के सुप्रशिद्ध पर्यटक स्थल कौसानी होते हुए जाता है।
सोमेश्वर से कौसानी सिर्फ 12-13 किमी दूर है। मुख्य रास्ता कौसनी – बैजनाथ – गरुड होते हुए बागेश्वर
जाता है मगर यह काफी लम्बा रूट है।
रास्ते की लम्बाई भी करीब 50-55 किमी है और थोडी भीड-भाड भी रहती है। सोमेश्वर से
एक और रास्ता सीधे बागेश्वर जाता है। सोमेश्वर से कौसानी रोड पर निकलते ही एक पुल
पार करना होता है। पुल पार करते ही रास्ता बांई ओर कौसानी के लिए मुड जाता है।
जबकि पुल पार करके एक रास्ता दायीं ओर मुडता है और गिरेछीना का पहाड चढकर सीधे
बागेश्वर जाता है। इसे गिरेछीना मार्ग कहते हैं, दूरी है करीब 32 किमी। शुरू में तो ठीक-ठाक ही रास्ता बना हुआ है और
ट्रैफिक भी लगभग न के बराबर है। करीब दस किमी के बाद रास्ता पहाड चढना शुरू हो
जाता है और सीधे पहाड की चोटी पर ले जाकर ही छोडता है। गिरेछीना गांव इस पहाड की
चोटी पर ही टंगा है। यहाँ से उतराई भी कम खतरनाक नही है। सडक भी कच्ची है। इस “गिरेछीना” से अगर जरा भी गिरे तो
राम-नाम सत्य ही समझों। यहाँ आके लगा यार इससे तो मेंन रास्ते से ही चले जाते।
कौसानी जैसी महा महंगी जगह देखते सो अलग। और साथ में बैजनाथ के मंदिर भी देख सकते
थे। “अब पछताये क्या होत”, अब तो चिडिया खेत चुग चुकी
थी। अब गिरो इस गिरेछीना से! खैर हम आराम-आराम से चलते हुए पहाड उतर गये। साढे
ग्यारह बजे के आसपास बागेश्वर पहुंचे। बागेश्वर सरयू और गौमती नदी के संगम पर बसा
है। मकरसंक्रांति के दिन यहाँ उत्तराखंड का सबसे बडा उत्तरायणी मेला लगता है।
बागेश्वर में बिना रुके ही निकल गये। सीधे कपकोट-मुनस्यारी वाला
रास्ता पकडा। बागेश्वर से इस रोड पर चलते ही जगह – जगह विभिन्न स्थानों की दूरी
बताने वाले बोर्डों पर लिखा है “पिंडारी ग्लेशियर - इतने किमी”। जिसे देखकर इधर
आने वाले पर्यटक “कनफ्यूज” हो जाते हैं कि शायद ये कोई अच्छा सा, सभी सुविधाओं से युक्त पर्यटन स्थल है जहाँ गाडी से पहुंचा जा सकता
है। काफी लोग तो बागेश्वर में इस बारे में पूछते भी नजर आते हैं। मगर जब उन्हे पता
चलता है कि ये उनकी नही हमारी “बपौती” है तो बेचारे मायूस से होकर लौट जाते हैं।
बागेश्वर से कपकोट करीब 21 किमी है और रास्ता कुल मिलाकर अच्छा ही बना हुआ है। कपकोट
बागेश्वर की एक तहसील है और उससे भी बढकर
ये चार ग्लेशियरों, क्रमशः पिण्डारी, कफनी, सुंदरढुंगा और नमिक ग्लेशियर का आधार स्थल है। हाँलाकि नमिक
ग्लेशियर के लिए मुख्य रास्ता मुनस्यारी से जाता है। कपकोट से तीन किमी दूर भराडी
है जहाँ से इन ग्लेशियरों के रास्तों में पडने वाले अंतिम गांवों (जो सडक मार्ग से
जुडे हैं) तक जीपें चलती हैं। भराडी से सीधे रास्ता सौंग जाता है जहाँ से अब से
कुछ साल पहले तक पिण्डारी पैदल यात्रा शुरू होती थी। इस रास्ते पर करीब दो – तीन
किमी चलने पर एक रास्ता सीधे हाथ की तरफ कटता है जो शामा होते हुए नमिक ग्लेशियर
के रास्ते में पडने वाले बागेश्वर के अंतिम गांव ‘गोगिना’ तक जाता है। इधर वाले रूट से गोगिना से ही नमिक ग्लेशियर का पैदल
ट्रैक शुरू होता है। उत्तराखंड सरकार द्वारा इस साल नमिक ग्लेशियर को “ट्रैक ऑफ दा
ईयर” चुना गया है जो जून के पहले हफ्ते से शुरू होगा। साहसिक पर्यटन को बढावा देने
के उद्देशय से हर साल किसी न किसी ट्रैक को “ट्रैक ऑफ दा ईयर” चुना जाता है।
सौंग वाले रास्ते पर करीब पांच किमी चलने पर एक जगह आती है –
रीठाबगड। यहाँ से एक रास्ता उल्टे हाथ को कटता है जो नदी पार कर कर्मी गांव जाता
है यहाँ से कर्मी करीब 19 किमी दूर है। जबकि सीधे सौंग जाने वाला रास्ता भी आगे
लोहारखेत, खलीधार, कर्मी, विनायकधार, धूर होते हुए खरकिया तक
जाता है। इस रास्ते से कर्मी करीब 40 किमी पडता है ऐसा भराडी में ही हमें पता चल
गया। कर्मी से खरकिया भी लगभग 18-19 किमी ही है। मतलब अगर कर्मी वाले रास्ते से
जायेंगे तो दूरी कम से कम 20 किमी कम हो जाती है। जबकि रास्ते दोनों ही कच्चे हैं।
चूंकि रास्ता कच्चा था तो हम आगे स्कूटी ले जाने से थोडा डर रहे थे। मगर भराडी में
एक दुकान वाले से पता चला कि खरकिया के लिए तो सारी जीपें जा चुकी हैं। अब तो बुक
पर ही कोई जीप वाला जायेगा और कम से तीन –चार हजार रुपये लेगा। “पागल है क्या?” हमनें खुद के लिए बोला। फिर दुकान वाले ने कहा अगर आपके पास पंचर
किट है तो स्कूटी ही ले जाओ। वैसे तो कोई दिक्कत नही होगी, लेकिन अगर आपके पास पंचर किट नही है तो फिर पंचर बनवाने आपको वापस
यहीं आना पडेगा। हमारे पास न तो पंचर किट थी, न ही हम जीप वाले को पैसा
देने वाले थे और यहाँ रुककर आज का दिन बरबाद करने का भी कोई तुक नही था। इसलिए
भोलेनाथ का नाम लिया और निकल लिए अपनी स्कूटी पर ही। जो होगा देखा जायेगा साला! कपकोट
या भराडी में कोई पैट्रोल पम्प भी नही है मगर दुकानों पर पैट्रोल मिल जाता है।
मार्किट रेट से करीब 10 रुपये ज्यादा देने पडते हैं। अब इस कच्चे रास्ते पर 45
किमी जाना और आना भी है तो भराडी से टंकी फुल करा ली। एक लीटर तेल ही लेने की
जरूरत पडी – 90 रुपये प्रति लीटर की दर से।
रीठाबगड से कर्मी वाले रास्ते पर मुड गये। मगर ये क्या? हमें तो दोनों रास्ते कच्चे बताये गये थे। लेकिन ये तो बना हुआ है!
अभी एकदम ताजा ही बना हुआ लग रहा है। वाह भोलेनाथ! करीब चार – पांच किमी की सडक
बनी हुई थी और आगे काम चल रहा था। यहाँ से आगे अब सिर्फ कच्ची सडक ही हमारी साथी
रहेगी। करीब डेढ घंटा लगा कर्मी पहुंचने में। रास्ते में और एक जगह सडक बनाने का
काम चलता मिला। कर्मी में वो सौंग – लौहारखेत से आने वाला रास्ता भी मिल गया। हमें
बाद में पता चला कि इस पूरे भराडी खरकिया मार्ग का ही “डामरीकरण” हो रहा है। यहाँ
सडक पक्की करने को डामर बिछाना कहते हैं शायद। कर्मी के बाद चढाई शुरु हो गयी।
स्कूटी मोनू चला रहा था और एक दो जगह तो मुझे उतरना भी पडा। कर्मी से शुरू हुई
चढाई सीधे विनायक धार पर ही खत्म हुई। विनायक धार में एक घर बना है। जिसमें एक
ढाबा भी है, जो लोगों को चाय, कोल्ड-ड्रिंक, मैगी व खाना खिलाता है। विनायक धार करीब 2800 मीटर की ऊंचाई पर है, यहाँ हवा भी काफी तेज चल रही थी। यहाँ हमनें भी मैगी और
कोल्ड-ड्रिंक का आनंद लिया। यहाँ आइडिया का नेटवर्क भी आ रहा था तो घर फोन करके
बता दिया कि अब अगले तीन –चार दिन नेटवर्क नही रहेगा। विनायक धार में जब हम मैगी
खा रहे थे तो लखनऊ से एक आई.ए.एस अंकल और आंटी अपनी सरकारी कार से पिंडारी
ग्लेशियर देखने आये। हमसे बात हुई तो उन्हे पता लगा कि कार से पिंडारी नही जा
सकते। फिर वो बेचारे विनायक धार से बर्फ वाले पहाड देखकर ही वापस लौट गये। विनायक
धार से खरकिया का पूरा रास्ता उतराई वाला है। करीब पौने घंटे में हम खरकिया पहुंच
गये।
छोटा सा गांव है खरकिया। जहाँ तक जीपे आती हैं वहां चार –पांच दुकानें हैं।
यहीं धाकुडी से आने वाला पैदल रास्ता भी मिल गया। एक दुकान के बगल में अपनी
“धन्नों” खडी की, जो भी फालतू सामान था यहीं छोड दिया और 2-2 केले खाकर निकल लिए अपनी पैदल
यात्रा पर। आज हमें पांच किमी पैदल चलकर खाती गांव में रुकना था। खर्किया से एक रास्ता सीधे नीचे उतार में पिंडर नदी
को पार कर ऊँचाई में बसे वाच्छम गाँव को जाता है। दूसरा रास्ता दाहिने को हल्के
उतार के बाद हल्की चढ़ाई लिए हुए उमुला, जैकुनी, दउ होते हुए खाती गाँव को है। सडक के दांयी ओर
से नीचे उतरते ही पांच फाइबर हट बने हैं। थोडा ही आगे चले थे कि बूंदाबांदी सी
होने लगी। मगर चुंकि रास्ता जंगल से होकर जाता है तो हमें इतनी बारिश लग नही रही थी। आधे
घंटे में उमला गांव पहुंचे तो बारिश तेज हो गई। एक छप्पर के नीचे शरण लेकर हम
लोगों ने अपने रेनकोट पहने और आगे निकल लिए। थोडी देर बाद बारिश भी बंद हो गई।
करीब पांच बजे होटल अन्नपूर्णा पहुंचे। अच्छा खासा ढाबा है, चार – पांच कमरे बने हैं ठहरने के लिए। होटल वाले ने
नाम अन्नपूर्णा की जगह “होटल अनपोना” लिखा हुआ है। मगर इस होटल से जो व्यू दिखता
है उसके तो क्या ही कहने!? सामने थोडा बांये सुंदरढूंगा घाटी दिखती है जबकि दांये पिंडर घाटी और इन
दोनों के बीच में उपर उठता एक डांडा दिखाई देता है। यहाँ हमनें चाय पी और कुछ
फोटों लिए। खाती गांव भी सामने ही दिखाई दे रहा था। आराम से पौने छह बजे तक खाती
पहुंच गये।
बढिया यात्रा स्मरण, पढ कर मजा आया।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सचिन भाई
हटाएंBhai g bahut Accha lga padh kar mja AA gya
हटाएं