13 ऑक्टूबर 2018, शनिवार
आज रविवार है और मैं ताडकेश्वर में हूँ। कल रात को ताडकेश्वर बाबा के दर्शन के बाद डिनर करके मैंं नीचे वाली धर्मशाला मेंं जाकर सो गया था। सुबह उठा तो देखा मेरे बगल वाले रुम में भी दो लडके सोये हुए हैं। येे लोग मेरठ से आये उन परिवारोंं के बच्चे हैं। रात मैं अपने रुम में आते ही सो गया था तो मुझे पता ही नही चला वो कब में आकर मेरे बगल वाले रुम में सो गये। सुबह फ्रैश होकर मैं एक बार फिर भोले बाबा के दर्शन कर आया। हर जगह की तरह यहाँ भी मैंने एक ही बात भोलेनाथ से कही -
सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामय। सर्वे भद्राणी पश्यंतु, मा कश्चिद दुख: भाग्यभवेत्॥
इस यात्रा को किए करीब दो साल से ज्यादा का समय हो चुका है। अत: यात्रा की अधिकतर बाते भूल गया हूँ। हाँ वापसी में आते हुए लेंसडाउन घूमकर आया। यहाँ टिपिन टॉप, भुल्ला ताल वगरह एक दो घूमने की जगह है। कुल मिलाकर लेंसडाउन पूरा छावनी प्लेस ही है। टिपिन टॉप से उत्तराखंड के वृहद हिमालय की लगभग सभी चोटियां दिखायी देती हैं। लेंसडाउन से कोटद्वार होते हुए हरिद्वार पहुंचा। रास्ते में कोटद्वार का प्रसिद्ध सिधबली मंदिर भी देखा। बहुत भीड थी।
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यहाँ में ताडकेश्वर में रात को रुका था।
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ताडकेश्वर परिकर्मा मार्ग
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ताडकेश्वर बाबा की जय
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टिपिन-टॉप से सुदूर दिखता हिमालय
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लेंसडाउन से दिखता जहरियाखाल
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भुल्ला ताल और उसके आसपास का दृश्य
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जय सिद्धबली बाबा
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सिद्धबली मंदिर के अंदर का दृश्य
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इस यात्रा के बाद तीन-चार यात्राएं और हो चुकि हैं जिसमें जनवरी - फरवरी 2019 में परिवार के साथ की गयी टिहरी लेक, धनौल्टी और सुरकंडा देवी की बर्फ वाली यात्रा; फरवरी 2020 में "यात्रा चर्चा परिवार" के साथी राजीव जी, सुभाष मान जी, देव रावत सर और नरेश कैलाशी जी के साथ की गई नागटिब्बा यात्रा शामिल है। इन्हे आज तक न जाने क्यों लिख नही पाया हूँ। आगे भोलेनाथ की कृपा रही तो कोरोनाकाल के बाद यात्राएं जारी रहेंगी, शायद लिखना भी हो। जय भोलेनाथ ।